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________________ ८२ प्रज्ञापना सूत्र Jain Education International दो सौ कम दस हजार हैं. और किसी के पूरे दस हज़ार हैं। इनमें से दो सौ कम दस हजार कृष्ण (काले) वर्ण पर्याय वाला नैरयिक पूर्ण दस हजार कृष्ण (काले) वर्ण पर्याय वाले नैरयिक से असंख्यात भाग हीन कहलाता है और परिपूर्ण कृष्ण (काले) वर्ण पर्याय वाला नैरयिक दो सौ कम दस हजार वाले की अपेक्षा असंख्यात भाग अधिक कहलाता है । इसी प्रकार पूर्वोक्त दस हजार संख्यक कृष्ण (काले) वर्ण पर्यायों में संख्यात परिमाण के रूप में कल्पित दस संख्या का भाग दिया जाए तो एक हजार संख्या प्राप्त होती है। यह संख्या दस हजार का संख्यातवां भाग है। मान लो, किसी नैरयिक के कृष्ण (काले) वर्ण पर्याय में संख्यात परिमाण के रूप में कल्पित दस संख्या का भाग दिया जाए तो एक हजार संख्या प्राप्त होती है। यह संख्या दस हजार का संख्यातवां भाग है। मान लो, किसी नैरयिक के कृष्ण (काले) वर्ण पर्याय ९ हजार हैं और दूसरे नैरयिक के दस हजार हैं, तो नौ हजार कृष्ण (काले) वर्ण पर्याय वाला नैरयिक, पूर्ण दस हजार कृष्ण (काले) वर्ण पर्याय वाले नैरयिक से संख्यात भाग हीन हुआ तथा उसकी अपेक्षा परिपूर्ण दस हजार कृष्ण (काले) वर्ण पर्याय वाला नैरयिक से संख्यात भाग अधिक हुआ। इसी प्रकार एक नैरयिक के कृष्ण (काले) वर्ण पर्याय एक हजार हैं, दूसरे नैरयिक के दस हजार हैं। यहाँ उत्कृष्ट संख्या के रूप में कल्पित दस संख्या को हजार से गुणा करने पर दस हजार संख्या आती है। इस दृष्टि से एक हजार कृष्ण (काले) वर्ण पर्याय एक हजार हैं, दूसरे नैरयिक के दस हजार हैं। यहाँ उत्कृष्ट संख्या के रूप में कल्पित दस संख्या को हजार से गुणा करने पर दस हजार संख्या आती है। इस दृष्टि से एक हजार कृष्ण (काले) वर्ण पर्याय वाला नैरयिक, दस हजार संख्यक कृष्ण (काले) वर्ण पर्याय वाले नैरयिक से संख्यात गुण हीन है और उसकी अपेक्षा दस हजार कृष्ण (काले) वर्ण पर्याय वाला नैरयिक संख्यात गुण अधिक है। इसी प्रकार एक नैरयिक के कृष्ण (काले) वर्ण पर्यायों का परिमाण दो सौ है और दूसरे के कृष्ण वर्णपर्यायों का परिमाण दस हजार है। दो सौ का यदि असंख्यात रूप में कल्पित पचास के साथ गुणा किया जाए तो दस हजार होता है। अतः दो सौ कृष्ण (काले) वर्ण पर्याय वाला नैरयिक दस हजार कृष्ण (काले) वर्ण पर्याय वाले नैरयिक की अपेक्षा असंख्यात गुण हीन है और उसकी अपेक्षा दस हजार कृष्ण वर्ण पर्याय वाला नारक संख्यात गुण अधिक है। इसी प्रकार मान लो, एक नैरयिक के कृष्ण (काले) वर्ण पर्याय सौ हैं, और दूसरे के दस हजार हैं। सर्वजीवान्तक परिमाण के रूप में परिकल्पित सौ को सौ से गुणा किया जाए तो दस हजार संख्या होती है। अतएव सौ कृष्ण वर्ण पर्याय त्राला नैरयिक दस हज़ार कृष्ण (काले) वर्ण वा नैरयिक से अनन्त गुण हीन हुआ और उसकी अपेक्षा दूसरा अनन्त गुण अधिक हुआ। यहाँ कृष्ण वर्ण आदि पर्यायों में षट्स्थानपतित हीनाधिकता बतलायी गई है उससे यह स्पष्ट होता है कि जब एक कृष्ण (काले) वर्ण ही अनंत पर्यायें होती हैं तो सभी वर्गों की पर्यायों का क्या कहना ? अर्थात् वे भी अनंत होती है। · *********◆◆◆◆◆◆ For Personal & Private Use Only www.jalnelibrary.org
SR No.004094
Book TitlePragnapana Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages414
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size9 MB
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