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पांचवां विशेष पद - नैरयिकों के पर्याय
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असंखिजा दीवकुमारा, असंखिजा उदहिकुमारा, असंखिजा दिसीकुमारा, असंखिजा वाउकुमारा, असंखिज्जा थणियकुमारा, असंखिज्जा पुढविकाइया, असंखिज्जा आउकाइया, असंखिजा तेउकाइया, असंखिज्जा वाउकाइया, अणंता वणस्सइकाइया, असंखिजा बेइंदिया, असंखिजा तेइंदिया, असंखिजा चउरिदिया, असंखिजा पंचिंदिय तिरिक्खजोणिया, असंखिज्जा मणुस्सा, असंखिज्जा वाणमंतरा, असंखिज्जा जोइसिया, असंखिजा वेमाणिया, अणंता सिद्धा, से एएणटेणं गोयमा! एवं वुच्चइ-ते णं णो संखिज्जा, णो असंखिज्जा, अणंता॥२४७॥
कठिन शब्दार्थ - केणद्वेणं - किस कारण से।
प्रश्न - हे भगवन् ! यह किस कारण से कहा जाता है कि जीव पर्याय न संख्यात हैं, न असंख्यात हैं किन्तु अनन्त हैं ? .
. उत्तर - हे गौतम! असंख्यात नैरयिक, असंख्यात असुरकुमार, असंख्यात नागकुमार, असंख्यात सुवर्णकुमार, असंख्यात विद्युतकुमार, असंख्यात अग्निकुमार, असंख्यात द्वीपकुमार, असंख्यात उदधिकुमार, असंख्यात दिक्कुमार (दिशाकुमार), असंख्यात वायुकुमार (पवनकुमार), असंख्यात स्तनितकुमार, असंख्यात पृथ्वीकायिक, असंख्यात् अप्कायिक, असंख्यात तेजस्कायिक, असंख्यात वायुकायिक, अनंत वनस्पतिकायिक, असंख्यात बेइन्द्रिय, असंख्यात तेइन्द्रिय, असंख्यात चउरिन्द्रिय, असंख्यात पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक, असंख्यात मनुष्य, असंख्यात व्यन्तर, असंख्यात ज्योतिषी, असंख्यात वैमानिक और अनंत सिद्ध हैं। इस कारण से हे गौतम! इस प्रकार कहा जाता है कि जीव पर्याय संख्यात नहीं, असंख्यात नहीं किन्तु अनन्त हैं।
विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में जीव पर्याय का परिमाण बताया गया है। जीव पर्याय संख्यात असंख्यात न हो कर अनन्त हैं क्योंकि तेईस दण्डक के जीव असंख्यात हैं, वनस्पति के जीव अनन्त हैं और सिद्ध भगवान् अनन्त हैं।
नैरयिकों के पर्याय णेरइयाणं भंते! केवइया पजवा पण्णत्ता? गोयमा! अणंता पज्जवा पण्णत्ता। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! नैरयिकों के कितने पर्याय कहे गये हैं? उत्तर - हे गौतम! नैरयिकों के अनंत पर्याय कहे गये हैं। से केणट्रेणं भंते! एवं वच्चड-'णेरडयाणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता?'
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