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प्रज्ञापना सूत्र
संख्या में कितने ही संख्यात हैं और कितने ही असंख्यात हैं तो कितने ही (वनस्पतिकायिक जीव और सिद्ध जीव) अनन्त भी हैं।
यह इस पंचम पद का संक्षिप्त विषय वर्णन बताया गया है।
चौथे पद में नैरयिक आदि पर्याय रूप में जीवों की स्थिति कही गई है और इस पांचवें पद में उनके औदयिक, क्षायोपशमिक और क्षायिक भाव की अपेक्षा पर्यायों की संख्या बताई गई है। उसका प्रथम सूत्र इस प्रकार है -
पर्याय के भेद कइविहा णं भंते! पजवा पण्णत्ता? गोयमा! दुविहा पजवा पण्णत्ता। तंजहा जीव पजवा य अजीव पजवा य॥२४६ ॥
कठिन शब्दार्थ - पज्जवा - पर्यव या पर्याय। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! पर्याय कितने प्रकार के कहे गये हैं?
उत्तर - हे गौतम! पर्याय दो प्रकार के कहे गये हैं। वे इस प्रकार हैं,- १. जीव पर्याय और २. अजीव पर्याय।
विवेचन - जीव और अजीव दोनों द्रव्य हैं। द्रव्य का लक्षण बताते हुए कहा है - 'गुणपर्यायवद् द्रव्यम्' (तत्त्वार्थ सूत्र अ. ५ सूत्र ३१) गुण और पर्याय वाला द्रव्य कहलाता है। पर्याय दो तरह की है... जीव पर्याय और २. अजीव पर्याय। इसीलिए इस पद में जीव पर्याय और अजीव पर्याय का निरूपण किया गया है। पर्याय, पर्यव, गुण, विशेष और धर्म ये पर्यायवाची (समानार्थक) शब्द है।
जीव पर्याय जीव पजवा णं भंते! किं संखिजा, असंखिजा, अणंता? . गोयमा! णो संखिज्जा, णो असंखिज्जा, अणंता। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! जीव पर्याय क्या संख्यात हैं, असंख्यात हैं या अनन्त हैं? उत्तर - हे गौतम! जीव पर्याय न तो संख्यात हैं और न असंख्यात है किन्तु अनन्त हैं।
से केणद्वेणं भंते! एवं वुच्चइ-'जीव पज्जवा णो संखिज्जा, णो असंखिज्जा, अणंता?'
गोयमा! असंखिज्जा णेरइया, असंखिज्जा असुरकुमारा, असंखिज्जा णागकुमारा, असंखिजा सुवण्णकुमारा, असंखिजा विजुकुमारा, असंखिजा अगणिकुमारा,
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