SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 49
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३६ प्रज्ञापना सूत्र उत्तर - हे गौतम! अपर्याप्तक सम्मूच्छिम खेचर पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिक जीवों की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की कही गई है। पज्जत्तगाणं पुच्छा ? गोयमा ! जहणेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं बावत्तरी वाससहस्साइं अंतोमुहुत्तूणाई | भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! पर्याप्तक सम्मूच्छिम खेचर पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिक जीवों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? उत्तर - हे गौतम! पर्याप्तक सम्मूच्छिम खेचर पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिक जीवों की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त की और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त्त कम बहत्तर हजार वर्ष की कही गई है। गब्भवक्कंतिय खहयर पंचिंदिय तिरिक्खजोणियाणं पुच्छा ? गोयमा ! जहणेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं पलिओवमस्स असंखिज्जइभागं । भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! गर्भज खेचर पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिक जीवों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? *........................00000000 उत्तर - हे गौतम! गर्भज खेचर पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिक जीवों की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट पल्योपम के असंख्यातवें भाग की कही गई है। अपज्जत्तगाणं पुच्छा ? गोमा ! जण व अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं । भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! अपर्याप्तक गर्भज खेचर पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिक जीवों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? Jain Education International उत्तर - हे गौतम! अपर्याप्तक गर्भज खेचर पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिक जीवों की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त्त की कही गई है। पज्जत्तगाणं पुच्छा ? गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं पलिओवमस्स असंखिज्जइभागं अंतोमुहुत्तूणं ॥ २३६ ॥ भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! पर्याप्तक गर्भज खेचर पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिक जीवों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? उत्तर - हे गौतम! पर्याप्तक गर्भज खेचर पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिक जीवों की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त्त कम पल्योपम के असंख्यातवें भाग की कही गई है। For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004094
Book TitlePragnapana Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages414
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy