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चौथा स्थिति पद - मनुष्यों की स्थिति
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विवेचन - प्रस्तुत सूत्रों में तिर्यंच पंचेन्द्रिय सामान्य, अपर्याप्तक और पर्याप्तक जीवों की स्थिति का निरूपण किया गया है।
मनुष्यों की स्थिति मणुस्साणं भंते! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? गोयमा! जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं तिण्णि पलिओवमाइं।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! मनुष्यों की स्थिति कितने काल की कही गई है? । उत्तर - हे गौतम! मनुष्यों की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट तीन पल्योपम की कही गई है।
अपजत्तग मणुस्साणं पुच्छा? गोयमा! जहण्णेण वि अंतोमुहुत्तं उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! अपर्याप्तक मनुष्यों की स्थिति कितने काल की कही गई है?
उत्तर - हे गौतम! अपर्याप्तक मनुष्यों की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की है।
पजत्तग मणुस्साणं पुच्छा ? गोयमा! जहण्णेणं अंतोमुहत्तं उक्कोसेणं तिण्णि पलिओवमाइं अंतोमुहत्तूणाई। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! पर्याप्तक मनुष्यों की स्थिति कितने काल की कही गई है?
उत्तर - हे गौतम! पर्याप्तक मनुष्यों की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम तीन पल्योपम की कही गई है।
विवेचन - कर्म भूमि मनुष्य की उत्कृष्ट स्थिति एक करोड़ पूर्व की हो सकती है। यहाँ पर मनुष्य की उत्कृष्ट स्थिति जो तीन पल्योपम की बताई गई है। वह अकर्म भूमि के युगलिक मनुष्य की अपेक्षा समझनी चाहिए। अवसर्पिणी काल के पहले आरे के तथा उत्सर्पिणी काल के छठे आरे सुषमसुषमा नामक आरे के मनुष्य की तथा देव कुरु, उत्तर कुरु के युगलिक मनुष्य की उत्कृष्ट स्थिति तीन पल्योपम की होती है।
सम्मुच्छिम मणुस्साणं भंते! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? गोयमा! जहण्णेण वि अंतोमुहुत्तं उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! सम्मूछिम मनुष्यों की स्थिति कितने काल की कही गई है? . उत्तर - हे गौतम! सम्मूर्छिम मनुष्यों की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की कही गई है।
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