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प्रज्ञापना सूत्र
उत्तर - हे गौतम! सिवाय संज्ञी के यह अर्थ समर्थ नहीं है। अर्थात् संज्ञी जान सकता है।
विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में मंदकुमार मंदकुमारिका के अनुसार ही ऊँट आदि के विषय में पांच प्रश्न किये गये हैं। जिनका निष्कर्ष यह है कि अवधिज्ञानी, जाति स्मरण ज्ञानी या विशिष्ट क्षयोपशम वालों के सिवाय किसी भी ऊँट, बैल, गधा, घोड़ा, बकरा और भेड़ को यह ज्ञान नहीं होता है कि मैं यह बोल रहा हूँ, यह आहार कर रहा हूँ, ये मेरे माता-पिता हैं, यह मेरे स्वामी का घर है अथवा यह मेरे स्वामी का पुत्र है। यहाँ ऊँट आदि भी अत्यंत बाल अवस्था वाले ही समझना बड़ी (परिपक्व) वय वाले नहीं क्योंकि परिपक्व अवस्था में ऊँट आदि को इन बातों का ज्ञान होना संभव है।
एकवचन आदि की अपेक्षा भाषा निरूपण अह भंते! मणुस्से महिसे आसे हत्थि सीहे वग्घे विगे दीविए अच्छे तरच्छे परस्सरे सियाले विराले सुणए कोलसुणए कोक्कंतिए ससए चित्तए चिल्ललए जे यावण्णे तहप्पगारा सव्वा सा एगवऊ?
हंता गोयमा! मणुस्से जाव चिल्ललए जे यावण्णे तहप्पगारा सव्वा सा एगवऊ।
कठिन शब्दार्थ - मणुस्से - मनुष्य, महिसे - महिष-भैंसा, आसे ,- अश्व-घोड़ा, हत्थि - हस्ती-हाथी, सीहे - सिंह-केशरीसिंह, वग्घे - व्याघ्र-बाघ, हल्की जाति का सिंह, विगे - वृक-भेड़िया, दीविए - द्वीपी-द्वीपक (गेंडा), अच्छे - ऋक्ष-रीछ, तरच्छे - तरक्ष बिज्जू-तेंदुआ (लकड़बग्घा), परस्सरेपाराशर (अष्टापद), सियाले- शृंगाल, विराले - बिडाल-बिलाव, सुणए - शुनक-कुत्ता, कोलसुणएकोल शुनक-शिकारी कुत्ता, कोक्कंतिए - लोमड़ी, ससए - शशक-खरगोश, चित्तए - चित्रक-चीता, चिल्ललए - चिल्ललक-एक जंगली जानवर।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! मनुष्य, महिष, अश्व, हस्ती, सिंह, बाघ, वृकः (भेड़िया), दीपड़ा (गेंडा), रीछ, तरक्ष, पाराशर (अष्टापद), सियाल, बिलाव, शुनक (कुत्ता), कोलशुनक (शिकारी कुत्ता), कोकंतिक (लोमड़ी), शशक (खरगोश), चित्रक (चीता), चिल्ललक ये और इसी प्रकार के अन्य जितने भी जीव हैं, क्या वे सब एक वचन हैं ?
उत्तर - हां गौतम! मनुष्य यावत् चिल्ललक तथा ये और इसी प्रकार के अन्य जितने भी जीव हैं वे सब एक वचन हैं।
अह भंते! मणुस्सा जाव चिल्ललगा जे यावण्णा तहप्पगारा सव्वा सा बहुवऊ? हंता गोयमा! मणुस्सा जाव चिल्ललगा....सव्वा सा बहुवऊ॥३८३॥
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