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________________ दसवां चरम पद - परमाणु पुद्गल आदि के चरम अचरम २९७ ......................0000000000000000000000000000000000000000000000000. ܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀ (स्थापना) किसी भी परमाणु आदि का नहीं बनता है वे आठ भङ्ग इस प्रकार हैं - दूसरा, चौथा, पाँचवाँ, छठा, पन्द्रहवां, सोलहवां, सतरहवां, अठारहवां। शेष अठारह भंग आठ प्रदेशों आदि सभी स्कन्धों में पाये जा सकते हैं। परमाणु द्वि प्रदेशी स्कंध आदि जितने प्रदेशावगाढ़ हो सकते हैं। उनमें यथा संभव उतने उतने भंग समझ लेने चाहिए। दुपएसिए णं भंते! खंधे किं चरिमे, अचरिमे जाव अवत्तव्वयाइं? गोयमा! दुपएसिए खंधे सिय चरिमे, णो अचरिमे, सिय अवत्तव्वए। सेसा भंगा पडिसेहेयव्वा ॥३५९॥ भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! द्विप्रदेशिक स्कन्ध के विषय में इन छब्बीस भंगों में से कौनसे और कितने भंग पाये जाते हैं ? उत्तर - हे गौतम! द्विप्रदेशिक स्कन्ध १. कथंचित् चरम है, २. अचरम नहीं है, ३. कथंचित् अवक्तव्य है। शेष तेईस भंगों का निषेध कर देना चाहिए। अर्थात् - द्विप्रदेशिक स्कन्ध में इन छब्बीस भंगों में से सिर्फ दो भंग पायें जाते हैं यथा - १. एक चरम २. एक अचरम। चौबीस भंग शून्य है। तिपएसिए णं भंते! खंधे किं चरिमे, अचरिमे जाव अवत्तव्वयाई? .. गोयमा! तिपएसिए खंधे सिय चरिमे १, णो अचरिमे २, सिय अवत्तव्वए ३, णो चरिमाइं ४, णो अचरिमाइं ५, णो अवत्तव्वयाइं ६, णो चरिमे य अचरिमे य ७, णो चरिमे य अचरिमाइं८, सिय चरिमाइंच अचरिमे य ९, णो चरिमाइं च अचरिमाइंच १०, सिय चरिमे य अवत्तव्वए य ११, सेसा भंगा पडिसेहेयव्वा॥३६०॥ भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! त्रिप्रदेशिक स्कन्ध के विषय में इन छब्बीस भंगों में से कौन से और कितने भंग पाये जाते हैं ? उत्तर - हे गौतम! त्रिप्रदेशिक स्कन्ध १. कथञ्चित् चरम है, २. अचरम नहीं है, ३. कथंचित् अवक्तव्य है, ४. वह न तो अनेक चरम रूप है, ५. न अनेक अचरम रूप है, ६. न अनेक अवक्तव्य रूप है, ७. न एक चरम और एक अचरम है, ८. न एक चरम और अनेक अचरम रूप है, ९. कथंचित् अनेक चरम रूप और एक अचरम है, १०. वह अनेक चरमरूप और अनेक अचरम रूप नहीं है, किन्तु ११. कथंचित् एक चरम और एक अवक्तव्य है। शेष पन्द्रह भंगों का निषेध कर देना चाहिए। अभिप्राय यह है कि तीन प्रदेशिक स्कन्ध में पहला, तीसरा, नववां और ग्यारहवां ये चार भंग पाये जाते हैं शेष बाईस भंग शून्य हैं। चउपएसिए णं भंते! खंधे किं चरिमे, अचरिमे जाव अवत्तव्वयाइं? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004094
Book TitlePragnapana Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages414
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size9 MB
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