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________________ २९६ प्रज्ञापना सूत्र १४. चरम बहुत, अवक्तव्य बहुत - १५. अचरम एक, अवक्तव्य एक, (यह भङ्ग शून्य है)। १६. अचरम एक, अवक्तव्य बहुत, (यह भङ्ग शून्य है)। १७. अचरम बहुत, अवक्तव्य एक, (यह भङ्ग शून्य है)। १८. अचरम बहुत, अवक्तव्य बहुत, (यह भङ्ग शून्य है)। तीन संयोगी भंग आठ१९. चरम एक, अचरम एक, अवक्तव्य एक २०. चरम एक, अचरम एक, अवक्तव्य बहुत २१. चरम एक, अचरम बहुत, अवक्तव्य एक ०० 100 २२. चरम एक, अचरम बहुत, अवक्तव्य बहुत रा २३. चरम बहुत, अचर' एक, अवक्तव्य एक शा २४. चरम बहुत, अचरम एक, अवक्तव्य बहुत [शाश २५. चरम बहुत, अचरम बहुत, अवक्तव्य एक ना २६. .रम बहुत, अचरम बहुत, अवक्तव्य बहुत शाश विवेचन - अनुयोग द्वार सूत्र में औदयिक, औपशमिक, क्षायिक, क्षायोपशमिक पारिणामिक और सान्निपातिक इन छह भावों के छब्बीस भङ्ग बनाये हैं। यह छब्बीस भङ्ग जीव के हैं किन्तु इन छब्बीस में से सिर्फ छह भङ्ग जीव में पाये जाते हैं बाकी बीस भङ्ग शून्य हैअर्थात् ये बीस भङ्ग किसी जीव में पाये नहीं जाते हैं। इसी प्रकार अजीव के अर्थात् परमाणु पुद्गल आदि के चरम, अचरम और अवक्तव्य इन तीन पदों के छब्बीस भङ्ग बनते हैं उनमें से अठारह भङ्ग तो परमाणु आदि में पाये जाते हैं अर्थात् पुद्गल के उस प्रकार के संस्थान बनते हैं। किन्तु आठ भङ्ग शून्य हैं अर्थात् इस प्रकार का संस्थान Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004094
Book TitlePragnapana Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages414
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size9 MB
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