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प्रज्ञापना सूत्र
२. उनसे लोक के चरम द्रव्य असंख्यात गुणा ३. उनसे अलोक के चरम द्रव्य विशेषाधिक ४. उनसे लोक अलोक के चरम अचरम द्रव्य विशेषाधिक ५ उनसे लोक के चरमांत प्रदेश असंख्यात गुणा ६. उनसे अलोक के चरमांत प्रदेश विशेषाधिक ७. उनसे लोक के अचरमांत प्रदेश असंख्यात गुणा .८. उनसे अलोक के अचरमान्त प्रदेश अनन्त गुणा ९. उनसे लोक अलोक के चरमांत अचरमांत प्रदेश .विशेषाधिक १०. उनसे सर्वद्रव्य विशेषाधिक ११. उनसे सर्व प्रदेश अनन्त गुणा। १२. उनसे सर्व पर्याय अनन्त गुणी-प्रत्येक प्रदेश की अनन्त, अनन्त अगुरुलघु आदि पर्यायें होने से।
लोक अलोक के चरम-अचरम द्रव्य प्रदेशों की अल्प बहुत्व १. सब से थोड़े लोक व अलोक के एक एक अचरम द्रव्य - कुल २' ही होने से। . .
२. उनसे लोक के चरम द्रव्य असंख्यात गुणा - २४प्रतर के असंख्यातवें भाग रूप असंख्य श्रेणी जितने होने से।
३. उनसे अलोक के चरम द्रव्य विशेषाधिक - लोक के चरम द्रव्य श्रेणी के असंख्यातवें भाग रूप चरम द्रव्य अलोक में और अधिक बढने से विशेषाधिक। एक एक प्रतर के पीछे ४ द्रव्यों की वृद्धि होने से।
४. उनसे लोक अलोक के चरम द्रव्य विशेषाधिक - १. तर के असंख्यातवें भाग+२. प्रतर के असंख्यातवें भाग +श्रेणी असंख्यातवें भाग (१. लोक के चरम द्रव्य प्रतर के असंख्यातवें भाग रूप व २. अलोक के चरम द्रव्य भी प्रतर के असंख्यातवें भाग रूप+श्रेणी के असंख्यातवें भाग (लोक के कुल चरम द्रव्यों से विशेषाधिक ही वृद्धि होने से)।
५. लोक के चरमान्त प्रदेश असंख्यात गुणा - लोक के असंख्यातवें भाग रूप असंख्य श्रेणी (संख्याता प्रतर रूप-३प्रतर झाझेरी) अर्थात् लोक के चरम द्रव्य प्रतर के असंख्यातवें भाग x अंगुल के असंख्यातवें भाग-लोक के असंख्यातवें भाग रूप असंख्य श्रेणी। (ग्रन्थों में एक-एक चरम द्रव्य की अवगाहना अंगल के असंख्यातवें भाग जितनी बताई है।)
६. अलोक के चरमान्त प्रदेश विशेषाधिक - लोक के चरम द्रव्यों की अपेक्षा-अलोक के चरम द्रव्य विशेषाधिक ही बढ़ने से-प्रदेश भी विशेषाधिक ही हुए। (श्रेणी के असंख्यातवें भाग x अंगुल के असंख्यातवें भाग-प्रतर के असंख्यातवें भाग रूप चरम प्रदेश अलोक में और अधिक बढ़ने से अर्थात् अलोक के असंख्यातवें भाग रूप जितने लोक के चरम प्रदेश हैं - उतने तो अलोक के चरम प्रदेश है ही उसमें फिर श्रेणी के असंख्यातवें भाग जितने चरम द्रव्य लोक की अपेक्षा अलोक में अधिक होने से-श्रेणी का असंख्यातवाँ भाग x अंगुल का असंख्यातवां भाग-प्रतर के असंख्यातवें भाग जितने चरम प्रदेशों की संख्या अलोक में और बढ़ी)।
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