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________________ दसवां चरम पद चरम अचरम पदों का अल्पबहुत्व ........................... लोक और अलोक के चरमान्त प्रदेश और अचरमान्त प्रदेश, ये दोनों विशेषाधिक हैं। द्रव्य और प्रदेशों की अपेक्षा से सबसे कम लोक- अलोक का एक-एक अचरम है, उसकी अपेक्षा लोक के बहुवचनान्त चरम असंख्यात गुणा हैं, उनसे अलोक के बहुवचनान्त चरम विशेषाधिक हैं । लोक और अलोक का अचरम और बहुवचनान्त चरम ये दोनों विशेषाधिक हैं। लोक के चरमान्तप्रदेश उनसे असंख्यात गुणा हैं, उनसे अलोक के चरमान्तप्रदेश विशेषाधिक हैं, उनसे लोक के अचरमान्तप्रदेश असंख्यात गुणा हैं, उनसे अलोक के अचरमान्तप्रदेश अनन्त गुणा हैं, लोक और अलोक के चरमान्तप्रदेश और अचरमान्तप्रदेश, ये दोनों विशेषाधिक हैं। लोक और अलोक के चरम और अचरम प्रदेशों की अपेक्षा सब द्रव्य मिलकर विशेषाधिक हैं। उनकी अपेक्षा सर्व प्रदेश अनन्त गुणा हैं और उनकी अपेक्षा भी सर्व पर्याय अनन्त गुणा हैं । Jain Education International विवेचन लोक अलोक की शामिल तीन अल्पबहुत्व द्रव्यार्थ की अपेक्षा ( लोकालोक के चरम अचरम द्रव्यों का ) अल्पबहुत्व - १. सबसे थोड़े लोक अलोक के एक अचरम द्रव्य - परस्पर तुल्य तथा गिनती में एक एक होने से २. उनसे लोक के चरम द्रव्य असंख्यात गुणा लोक के पर्यंतवर्ती - किनारे के खण्ड असंख्याता होने से ३. उनसे अलोक के चरम द्रव्य विशेषाधिक- अलोक के चरम खण्ड लोक के चरम खण्डों से कुछ अधिक ' होने से विशेषाधिक हैं । ४. उनसे लोक तथा अलोक के चरम अचरम द्रव्य विशेषाधिक- पूर्वोक्त तीनों बोल (१, २, ३) शामिल हो जाने से । प्रदेशार्थ की अपेक्षा (लोकालोक के चरम अचरम प्रदेशों का ) अल्पबहुत्व १. सबसे थोड़े लोक के चरमांत प्रदेश- लोक के प्रान्तवर्ती खण्डों के प्रदेश असंख्य असंख्य होने से २. उनसे अलोक के चरमांत प्रदेश विशेषाधिक, अलोक के जो चरम द्रव्य है उनके प्रदेश भी असंख्य असंख्य होते हैं परन्तु लोक के चरमान्त प्रदेशों से कुछ अधिक होने से विशेषाधिक हैं ३. से लोक के अचरमांत प्रदेश असंख्यात गुणा लोक के मध्य खण्ड के प्रदेश असंख्यात गुणा अधिक होने से ४. उनसे अलोक के अचरमांत प्रदेश अनन्त गुणा, अलोक के कुछ चरमांत प्रदेशों को छोड़ कर बाकी के सभी प्रदेश अचरमांत प्रदेश गिने जाते हैं। ऐसे प्रदेश अनन्त होने से अनन्त गुणा है ५. उनसे लोकालोक के चरमान्त अचरमांत प्रदेश विशेषाधिक- पूर्वोक्त चारों बोल (१, २, ३, ४) शामिल हो जाने से । द्रव्य प्रदेशार्थ (शामिल) की अपेक्षा से (लोक और अलोक के चरम अचरम द्रव्यों और चरमांत अचरमांत प्रदेशों का ) अल्पबहुत्व - १. सबसे थोड़ा लोक अलोक का एक अचरम द्रव्य - २८७ 00000 - For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004094
Book TitlePragnapana Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages414
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size9 MB
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