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नववां योनि पद - नैरयिक आदि में संवृत्त आदि योनियाँ
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सचित्त आदि योनियों की अपेक्षा जीवों का अल्पबहुत्व इस प्रकार है- सबसे थोड़े जीव सचित्ताचित्त (मिश्र) योनि वाले होते हैं क्योंकि गर्भज तिर्यंच पंचेन्द्रिय और गर्भज मनुष्य की ही मिश्र योनि होती है। उनसे अचित्त योनि वाले जीव असंख्यात गुणा हैं क्योंकि नैरयिक, देव और कितने ही पृथ्वीकायिक, अपकायिक, तेजस्कायिक, वायुकायिक, प्रत्येक वनस्पति, बेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चउरिन्द्रिय, सम्मूछिम तिर्यंच पंचेन्द्रिय और सम्मूछिम मनुष्यों की अचित्त योनि होती है। उनसे योनि रहित अनन्त गुणा हैं क्योंकि सिद्ध भगवान् अंनंत हैं उनसे सचित्त योनि वाले अनंत गुणा हैं क्योंकि निगोद के जीवों की सचित्त योनि हैं और वे सिद्धों से भी अनंत गुणा हैं।
संवृत्त आदि तीन योनियाँ कहविहाणं भंते! जोणी पण्णत्ता?
गोयमा! तिविहा जोणी पण्णत्ता। तंजहा-संवुडा जोणी, वियडा जोणी, संवुडवियडा जोणी॥ ३४९॥
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! योनि कितने प्रकार की कही गई है?
उत्तर - हे गौतम! योनि तीन प्रकार की कही गई है। वह इस प्रकार है - १. संवृत्त योनि २. विवृत्त योनि और ३. संवृत्त विवृत्त योनि।
विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में योनि के तीन भेद कहे गये हैं - १. संवृत्त योनि - जो योनि ढंकी हुई हो २. विवृत्त योनि - जो योनि खुली हुई हो, जो बाहर से स्पष्ट प्रतीत होती हो और ३. संवृत्त विवृत्त योनि - जो योनि संवृत्त और विवृत्त दोनों प्रकार की मिश्रित हो।
- नैरयिक आदि में संवृत्त आदि योनियाँ . णेरइयाणं भंते! किं संवुडा जोणी, वियडा जोणी, संवुडवियडा जोणी?
गोयमा! संवुडा जोणी, णो वियडा जोणी, णो संवुडवियडा जोणी। एवं जाव वणस्सइकाइयाणं।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! नैरयिकों की क्या संवृत योनि होती है, विवृत योनि होती है अथवा संवृत-विवृत योनि होती है ?
उत्तर - हे गौतम! नैरयिकों की योनि संवृत्त होती है, परन्तु विवृत्त नहीं होती और न ही संवृत्तविवृत्त होती है। इसी प्रकार वनस्पतिकायिक जीवों तक की योनि के विषय में कहना चाहिए।
बेइंदियाणं भंते! किं संवुडा जोणी, वियडा जोणी, संवुडवियडा जोणी?
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