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प्रज्ञापना सूत्र
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इसी प्रकार यावत् वैमानिक तक के देवों के जाति नाम-निधत्तायु की आकर्ष-संख्या का कथन करना चाहिए। .
इसी प्रकार गति नाम निधत्तायु, स्थिति नाम निधत्तायु, अवगाहना नाम निधत्तायु, प्रदेश नाम निधत्तायु और अनुभाव (अनुभाग) नाम निधत्तायु का बन्ध भी जघन्य एक, दो या तीन अथवा उत्कृष्ट आठ आकर्षों से करते हैं।
विवेचन - यह आकर्ष का नियम आयुष्य के साथ बंधने वाले जाति, गति आदि प्रकृतियों के लिए है। समुच्चय जीव और चौबीस दण्डक में उक्त छह प्रकार का आयुष्य बंध १-२-३ यावत् ८ आकर्षों से बन्धता है। .
एएसि णं भंते! जीवाणं जाइणामणिहत्ताउयं जहण्णेणं एक्केण वा दोहिं वा तीहिं वा जाव उक्कोसेणं अट्ठहिं आगरिसेहिं पकरेमाणाणं कयरे कयरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? ___ गोयमा! सव्वत्थोवा जीवा जाइणाम णिहत्ताउयं अट्ठहिं आगरिसेहिं पकरेमाणा, . सत्तहिं आगरिसेहिं पकरेमाणा संखिजगुणा, छहिं आगरिसेहिं पकरेमाणा संखिजगुणा, एवं पंचहिं संखिजगुणा, चउहिं संखिजगुणा, तीहिं संखिजगुणा, दोहिं संखिजगुणा, एगेणं आगरिसेणं पकरेमाणा संखिजगुणा।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! इन जीवों में जघन्य एक, दो और तीन अथवा उत्कृष्ट आठ आकर्षों से बन्ध करने वाले जीवों में कौन किनसे अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक हैं ?
उत्तर - हे गौतम! सबसे कम जीव जाति नाम निधत्तायु को आठ आकर्षों से बांधने वाले हैं, सात आकर्षों से बांधने वाले इनसे संख्यात गुणा हैं, छह आकर्षों से बांधने वाले इनसे संख्यात गुणा हैं, इसी प्रकार पांच आकर्षों से बांधने वाले इनसे संख्यात गुणा हैं, चार आकर्षों से बांधने वाले इनसे संख्यात गुणा हैं, तीन आकर्षों से बांधने वाले, इनसे संख्यात गुणा हैं, दो आकर्षों से बांधने वाले, इनसे संख्यात गुणा हैं और एक आकर्ष से बांधने वाले जीव इनसे भी संख्यात गुणा हैं। .
एवं एएणं अभिलावेणं जाव अणुभागणाम णिहत्ताउयं, एवं एए छप्पिय अप्पाबहुदंडगा जीवाइया भाणियव्वा॥८ दारं॥ ३२८॥
॥पण्णवणाए भगवईए छटुं वक्कंतिपयं समत्तं॥
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