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छठा व्युत्क्रांति पद - आकर्ष द्वार
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भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! नैरयिकों का आयुष्य बन्ध कितने प्रकार का कहा गया है ? उत्तर - हे गौतम! नैरयिकों का आयुष्य बन्ध छह प्रकार का कहा गया है। वह इस प्रकार है - १. जाति नाम निधत्तायु २. गति नाम निधत्तायु ३. स्थिति नाम निधत्तायु ४. अवगाहना नाम निधत्तायु ५. प्रदेश नाम निधत्तायु और ६. अनुभाव (अनुभाग) नाम निधत्तायु।
इसी प्रकार यावत् वैमानिकों तक के आयुष्य बन्ध की प्ररूपणा समझ लेनी चाहिए ।
विवेचन - नैरयिक जीवों के छह प्रकार का आयु बन्ध कहा गया है । यथा - जाति नाम निधत्त आयु यावत् अनुभाव (अनुभाग ) नाम निधत्त आयु। इसी प्रकार वैमानिक देवों पर्यन्त सभी जीवों के छह प्रकार का आयुष्य बन्ध होता है ।
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जीवाणं भंते! जाइणाम णिहत्ताउयं कहिं आगरिसेहिं पगरेंति ? गोयमा ! जहणणेणं एक्केण वा दोहिं वा तीहिं वा जाव उक्कोसेणं अट्ठहिं आगरिसेहिं पगरेंति ।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! जीव जाति नाम निधत्तायु को कितने आकर्षों से बांधते हैं ? उत्तर - हे गौतम! जीव जाति नाम निधत्तायु को जघन्य एक, दो या तीन अथवा उत्कृष्ट आठ आकर्षों से बान्धते हैं ।
विवेचन प्रश्न आकर्ष किसे कहते हैं ?
उत्तर - अध्यवसाय की धारारूप प्रयत्न विशेष से कर्म पुद्गलों को ग्रहण करना अर्थात् अपनी तरफ खींचना आकर्ष कहलाता है। जैसे गाय पानी पीती हुई भय से इधर उधर देखती है और रुक-रुक कर पानी पीती है, इसी प्रकार जीव भी जब आयु बंध योग्य तीव्र अध्यवसाय से जातिनाम निधत्तायु बांधता है तो एक आकर्ष से बांध लेता है। मन्द अध्यवसाय होने पर दो तीन आकर्ष से, मन्दतर अध्यवसाय होने पर तीन चार आकर्ष से और मन्दतम अध्यवसाय होने पर पांच छह सात अथवा आठ आकर्ष से आयु बांधता है।
णेरड्या णं भंते! जाइणाम णिहत्ताउयं कइहिं आगरिसेहिं पगरेंति ? गोयमा ! जहणं एक्केण वा दोहिं वा तीहिं वा, जाव उक्कोसेणं अट्ठहिं आगरिसेहिं पगरेंति एवं जाव वेमाणिया । एवं गइणाम णिहत्ताउए वि, ठिईणाम णिहत्ताउए वि, ओगाहणणाम णिहत्ताउए वि, पएसणाम णिहत्ताउए वि, अणुभावणाम णिहत्ताउए वि ॥ ३२७॥
भावार्थ- प्रश्न - हे भगवन् ! नैरयिक जीव जाति नाम निधत्तायु को कितने आकर्षों से बांधते हैं ? उत्तर - हे गौतम! नैरयिक जीव जाति नाम निधत्तायु को जघन्य एक, दो या तीन अथवा उत्कृष्ट आठ आकर्षों से बांधते हैं ।
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