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________________ २३४ Jain Education International प्रज्ञापना सूत्र जाता है। यही दोनों अपवर्तनीय और अनपवर्तनीय आयुष्य का भेद है । जिस प्रकार आयुष्य बढ़ता भी नहीं है उसी प्रकार घटता भी नहीं है । बन्धा हुआ आयुष्य उस भव में पूरा का भूरा भोग लिया जाता है। सोपक्रमी आयुष्य संख्यात वर्षायुष्क जीवों के ही होता है अर्थात् अधिक से अधिक एक करोड़ पूर्व तक की आयु वाले तिर्यंच पंचेन्द्रिय और मनुष्य के जीव सोपक्रमी आयुष्य वाले हो सकते हैं । युगलिक तिर्यंच मनुष्यों को छोड़कर एवं ५४ उत्तम पुरुष के सिवाय शेष औदारिक के दसों दण्डकों वाले जीव सोपक्रमी आयुष्य वाले हो सकते हैं। वे जीव एक करोड़ पूर्व तक की आयु का कोई भी उपक्रम प्राप्त होने पर मात्र अन्तर्मुहूर्त में शेष बचे हुए आयुष्य को एक साथ खपा सकते हैं ऐसा टीकाओं में बताया गया है। ऐसा मानने में कोई आगमिक बाधा नहीं आती है । पंचिंदिय तिरिक्खजोणिया णं भंते! कइभागावसेसाउया परभवियाउयं पकरेंति ? गोयमा! पंचिंदिय तिरिक्खजोणिया दुविहा पण्णत्ता । तंजहा - संखिज्जवासाडया य असंखिज्जवासाउया य । तत्थ णं जे ते असंखिज्जवासाउया ते णियमा छम्मासावसेसाउया परभवियाउयं पकरेंति । तत्थ णं जे ते संखिज्जवासाउया ते दुविहा पण्णत्ता । तंजहा- सोवक्कमाउया य णिरुवक्कमाउया य । तत्थं णं जे ते णिरुवक्कमाया ते णियमा तिभागावसेसाउया परभवियाउयं प्रकरेंति, तत्थ णं जे ते सोवक्कमाउया ते णं सिय तिभागे परभवियाउयं पर्करेंति, सिय तिभाग-तिभागे परभवियाउयं पकरेंति, सिय तिभाग तिभाग तिभागावसेसाउया परभवियाउयं पकरेंति । एवं मणुस्सा वि । वाणमंतर - जोइसिय-वेमाणिया जहा णेरड्या ॥ ७ दारं ॥ ३२५ ॥ भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक जीव, आयुष्य का कितना भाग शेष रहने पर परभव का आयुष्य का बन्ध करते हैं ? उत्तर - हे गौतम! पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक जीव दो प्रकार के कहे गए हैं। वे इस प्रकार हैं १. संख्यात वर्ष की आयु वाले और २. असंख्यात वर्ष की आयु वाले । उनमें से जो असंख्यात वर्ष की आयु वाले हैं, वे नियम से छह मास आयु शेष रहते परभव का आयुष्य बन्ध कर लेते हैं और जो इनमें संख्यातवर्ष की आयु वाले हैं, वे दो प्रकार के कहे गए हैं। वे इस प्रकार हैं - १. सोपक्रम आयु वाले और २. निरुपक्रम आयु वाले। इनमें जो निरुपक्रम आयु वाले हैं, वे नियमतः आयु का तीसरा भाग शेष रहने पर परभव का आयुष्यबन्ध करते हैं । जो सोपक्रम आयु वाले हैं, वे कंदाचित् आयुष्य का तीसरा भाग शेष रहने पर पारभविक आयुष्यबन्ध करते हैं, कदाचित् आयु के तीसरे भाग का तीसरा भाग शेष • .................................................................................. For Personal & Private Use Only - www.jainelibrary.org
SR No.004094
Book TitlePragnapana Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages414
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size9 MB
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