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________________ २२८ प्रज्ञापना सूत्र भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! यदि पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिक जीव तिर्यंचयोनिकों में उत्पन्न होते हैं तो क्या एकेन्द्रियों में उत्पन्न होते हैं यावत् पंचेन्द्रियों में उत्पन्न होते हैं ? उत्तर - हे गौतम! एकेन्द्रियों में भी उत्पन्न होते हैं, यावत् पंचेन्द्रियों में भी उत्पन्न होते हैं। इसी प्रकार जैसा इनका उपपात कहा है, वैसी ही इनकी उद्वर्त्तना भी कहनी चाहिए। विशेषता यह है कि ये असंख्यातवर्षों की आयु वालों में भी उत्पन्न होते हैं। . जइ मणुस्सेसु उववनंति किं सम्मुच्छिम मणुस्सेसु उववजंति, गब्भवक्कंतिय मणुस्सेसु उववजंति? ___ गोयमा! दोसु वि उववजंति। एवं जहा उववाओ तहेव उव्वदृणा वि भाणियव्वा, णवरं अकम्मभूमग-अंतरदीवग-गब्भवक्कंतिय मणुस्सेसु असंखिजवासाउएसु वि एए उववजंतीति भाणियव्वं। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! यदि मनुष्यों में उत्पन्न होते हैं तो क्या सम्मूछिम मनुष्यों में उत्पन्न होते हैं अथवा गर्भज मनुष्यों में उत्पन्न होते हैं ? उत्तर - हे गौतम! वे दोनों में ही उत्पन्न होते हैं। ___ इसी प्रकार जैसा इनका उपपात कहा, वैसी ही इनकी उद्वर्तना भी कहनी चाहिए। विशेषता यह है कि अकर्मभूमिज, अन्तरद्वीपज और असंख्यातवर्ष की आयु वाले मनुष्यों में भी ये उत्पन्न होते हैं, यह कहना चाहिए। जइ देवेसु उववजंति किं भवणवईसु उववजंति जाव किं वेमाणिएसु उववजंति? गोयमा! सव्वेसु चेव उववति। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! यदि पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिक जीव देवों में उत्पन्न होते हैं तो क्या भवनपति देवों में उत्पन्न होते हैं ? यावत् वैमानिकों में भी उत्पन्न होते हैं ? उत्तर - हे गौतम! सभी प्रकार के देवों में उत्पन्न होते हैं। जइ भवणवईसु उववजति किं असुरकुमारेसु उववजति जाव थणियकुमारेसु उववजति? गोयमा! सव्वेसु चेव उववजंति। एवं वाणमंतर-जोइसिय-वेमाणिएसु णिरंतरं उववजंति जाव सहस्सारो कप्योत्ति॥३२२॥ . भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! यदि पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिक जीव भवनपति देवों में उत्पन्न होते हैं तो क्या असुरकुमारों में उत्पन्न होते हैं ? यावत् स्तनित्कुमारों में उत्पन्न होते हैं? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004094
Book TitlePragnapana Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages414
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size9 MB
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