________________
छठा व्युत्क्रांति पद - उद्वर्तना द्वार
२२९
उत्तर - हे गौतम! सभी भवनपतियों में उत्पन्न होते हैं।
इसी प्रकार वाणव्यंतरों, ज्योतिषियों और सहस्रारकल्प नामक आठवें देवलोक तक के वैमानिक देवों में निरन्तर उत्पन्न होते हैं।
मणुस्सा णं भंते! अणंतरं उव्वट्टित्ता कहिं गच्छंति, कहिं उववजंति? किं णेरइएसु उववजति तिरिक्ख जोणिएसु उववजंति, मणुस्सेसु उववजंति, देवेसु उववजति?
गोयमा! णेरइएसु वि उववजंति जाव देवेसु वि उववजंति। एवं णिरंतरं सव्वेसु ठाणेसु उववजंति।
गोयमा! सव्वेसु ठाणेसु उववजति, ण कहिं च पडिसेहो कायव्वो जाव सव्वट्ठसिद्धदेवेसु वि उववजंति, अत्थेगइया सिझंति, बुझंति, मुच्चंति, परिणिव्वायंति, सव्वदुक्खाणं अंतं करेंति। ___भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! मनुष्य अनन्तर उद्वर्तन करके कहाँ जाते हैं, कहाँ उत्पन्न होते हैं ? क्या वे नैरयिकों में उत्पन्न होते हैं ? तिर्यंच योनिकों में, मनुष्यों में, देवों में भी उत्पन्न होते हैं?
उत्तर - हे गौतम! नैरयिकों में भी उत्पन्न होते हैं, यावत् देवों में भी उत्पन्न होते हैं। - प्रश्न - हे भगवन्! क्या मनुष्य नैरयिक आदि सभी स्थानों में उत्पन्न होते हैं?
उत्तर - हे गौतम! वे इन सभी स्थानों में उत्पन्न होते हैं, कहीं भी इनके उत्पन्न होने का निषेध नहीं करना चाहिए, यावत् सर्वार्थसिद्ध देवों तक में भी उत्पन्न होते हैं और कई मनुष्य सिद्ध होते हैं, बुद्ध होते हैं, मुक्त होते हैं, परिनिर्वाण को प्राप्त करते हैं और सर्वदुःखों का अन्त करते हैं। .
वाणमंतर-जोइसिय-वेमाणिय-सोहम्मीसाणा य जहा असुरकुमारा, णवरं जोइसियाण य वेमाणियाण य चयंतीति अभिलावो कायव्वो।
भावार्थ - वाणव्यन्तर, ज्योतिषी और सौधर्म एवं ईशान देवलोक के वैमानिक देवों की उद्वर्तन-प्ररूपणा असुरकुमारों के समान समझनी चाहिए। विशेषता यह है कि ज्योतिषी और वैमानिक देवों के लिए 'च्यवन करते हैं ' इस शब्द का प्रयोग करना चाहिए।
सणंकुमारदेवा णं भंते! अणंतरं उव्वट्टित्ता कहिं गच्छंति, कहिं उववजंति? किं णेरइएसु उववजंति, तिखिक्ख जोणिएसु उववजंति, मणुस्सेसु उववजंति, देवेसु उववजति?
गोयमा! जहा असुरकुमारा, णवरं एगिदिएसु ण उववजंति। एवं जाव : सहस्सारगदेवा।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org