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________________ छठा व्युत्क्राति पद - चतुविशात द्वार १७९ बेइंदिया णं भंते! केवइयं कालं विरहिया उववाएणं पण्णत्ता? . गोयमा! जहण्णेणं एगं समयं, उक्कोसेणं अंतोमुहत्तं। एवं तेइंदिया, चउरिदिया ॥२८५॥ भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! बेइन्द्रिय कितने काल तक उत्पत्ति रहित कहे गये हैं ? उत्तर - हे गौतम! बेइन्द्रिय जघन्य एक समय और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त तक उत्पत्ति रहित कहे गये हैं। इसी प्रकार तेइन्द्रिय और चउरिन्द्रिय जीवों के विषय में भी समझना चाहिए। संमुच्छिम पंचिंदिय तिरिक्ख जोणिया णं भंते! केवइयं कालं विरहिया उववाएणं पण्णत्ता? गोयमा! जहण्णेणं एग समयं, उक्कोसेणं अंतोमुहत्तं। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! सम्मूर्छिम पंचेन्द्रिय तिर्यंच कितने काल तक उत्पत्ति रहित कहे गये हैं ? उत्तर - हे गौतम! सम्मूर्छिम पंचेन्द्रिय तिर्यंच जघन्य एक समय और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त तक उत्पत्ति रहित कहे गये हैं। गब्भवक्कंतिय पंचेंदिय तिरिक्ख जोणिया णं भंते! केवइयं कालं विरहिया उववाएणं पण्णत्ता? गोयमा! जहण्णेणं एगं समयं, उक्कोसेणं बारस मुहुत्ता॥२८६॥ भावार्थ-प्रश्न - हे भगवन् ! गर्भज तिर्यंच पंचेन्द्रिय कितने काल तक उत्पत्ति रहित कहे गए हैं ? - उत्तर - हे गौतम! गर्भज तिर्यंच पंचेन्द्रिय जघन्य एक समय और उत्कृष्ट बारह मुहूर्त तक उत्पत्ति रहित कहे गये हैं। संमुच्छिम मणुस्सा णं भंते! केवइयं कालं विरहिया उववाएणं पण्णत्ता? । गोयमा! जहण्णेणं एगं समयं, उक्कोसेणं चउव्वीसं मुहुत्ता। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! सम्मूछिम मनुष्य कितने काल तक उत्पत्ति रहित कहे गये हैं ? उत्तर - हे गौतम! सम्मूछिम मनुष्य का उपपात विरह काल जघन्य एक समय और उत्कृष्ट चौबीस मुहूर्त का कहा गया है। अर्थात् कोई एक समय ऐसा आता है जिसमें चौबीस मुहूर्त तक कोई भी सम्मूर्छिम मनुष्य उत्पन्न नहीं होता है। विवेचन - यद्यपि लोक में कभी भी मल मूत्र आदि का अभाव नहीं होता है। मल मूत्र आदि के स्थान लोक में निरन्तर मिलते ही रहते हैं। तथापि तथाप्रकार की हवा आदि के कारण एवं सम्मूछिम Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004094
Book TitlePragnapana Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages414
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size9 MB
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