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________________ १७८ प्रज्ञापना सूत्र भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! असुरकुमार (भवनपति जाति के देव) कितने काल तक उत्पत्ति रहित कहे गये हैं? उत्तर - हे गौतम! असुरकुमार जघन्य एक समय और उत्कृष्ट चौबीस मुहूर्त तक उत्पत्ति से रहित कहे गये हैं। णागकुमारा णं भंते! केवइयं कालं विरहिया उववाएणं पण्णत्ता? गोयमा! जहण्णेणं एगं समयं उक्कोसेणं चउव्वीसं मुहुत्ता। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! नागकुमार कितने काल तक उत्पत्ति रहित कहे गये हैं ? उत्तर - हे गौतम! नागकुमार जघन्य एक समय और उत्कृष्ट चौबीस मुहूर्त तक उत्पत्ति रहित कहे गये हैं। एवं सुवण्णकुमारा णं विजुकुमारा णं अग्गिकुमारा णं दीवकुमारा णं दिसिकुमारा णं उदहिकुमारा णं वाउकुमारा णं थणियकुमारा णं च पत्तेयं जहण्णेणं एगं समयं, उक्कोसेणं चउव्वीसं मुहुत्ता॥ २८३॥ इसी प्रकार सुपर्णकुमार, विद्युतकुमार, अग्निकुमार, द्वीपकुमार, दिक्कुमार, उदधिकुमार, वायुकुमार और स्तनितकुमार प्रत्येक जघन्य एक समय और उत्कृष्ट चौबीस मुहूर्त तक उत्पत्ति रहित होते हैं। विवेचन - असुरकुमार आदि दस भवनपति देवों के उत्पन्न होने का विरह जघन्य एक समय और उत्कृष्ट चौबीस मुहूर्त का कहा गया है। पुढवीकाइया णं भंते! केवइयं कालं विरहिया उववाएणं पण्णत्ता? गोयमा! अणुसमयमविरहियं उववाएणं पण्णत्ता। कठिन शब्दार्थ - अणुसमयमविरहियं - अनुसमय अविरहित। भावार्थ-प्रश्न - हे भगवन् ! पृथ्वीकायिक कितने काल तक उपपात-उत्पत्ति रहित कहे गये हैं ? उत्तर - हे गौतम! पृथ्वीकायिक प्रतिसमय उत्पत्ति से अविरहित है। यानी प्रति समय निरन्तर उत्पन्न होते ही रहते हैं, अर्थात् इनमें विरह नहीं पड़ता है। एवं आउकाइयाण वि तेउकाइयाण वि वाउकाइयाण वि वणस्सइकाइयाण वि अणुसमयं अविरहिया उववाएणं पण्णत्ता॥ २८४॥ भावार्थ - इसी प्रकार अप्कायिक, तेजस्कायिक, वायुकायिक और वनस्पतिकायिक भी प्रति समय निरन्तर उत्पन्न होते ही रहते हैं। विवेचन - पृथ्वीकाय आदि पांच स्थावरों का उत्पन्न होने का विरह नहीं पड़ता है। वे निरन्तर उत्पन्न होते रहते हैं। . Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004094
Book TitlePragnapana Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages414
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size9 MB
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