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________________ छठा व्युत्क्रांति पद - द्वादश द्वार १७३ कठिन शब्दार्थ - उव्वट्टण - उद्वर्तन, परभवियाउयं - परभविकायुष-पर भव का आयुष्य, आगरिसा - आकर्ष (खींचना)। . भावार्थ - १. बारह मुहूर्त और २. चौबीस मुहूर्त का उपपात और उद्वर्तना-मरण की अपेक्षा विरहकाल ३. सान्तर-सान्तर उत्पन्न होते हैं या निरन्तर उत्पन्न होते हैं? ४. एक समय-एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं और कितने मृत्यु को प्राप्त होते हैं ५. कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ६. उद्वर्तनामरण को प्राप्त होकर कहाँ उत्पन्न होते हैं ७. परभविकायुष-परभंव का आयुष्य कब बाँधते हैं ? और ८. आयुष्य बंध के संबंध में आठ आकर्ष - इन आठ द्वारों के द्वारा यह छठा पद कहा गया है। प्रथम द्वादश द्वार णिरय गई णं भंते! केवइयं कालं विरहिया उववाएणं पण्णत्ता? गोयमा! जहण्णेणं एगं समयं, उक्कोसेणं बारस मुहुत्ता। कठिन शब्दार्थ - विरहिया - विरहित-उत्पत्ति से रहित। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! नरक गति कितने काल तक नैरयिक जीवों की उत्पत्ति से रहित कही गई है? . उत्तर - हे गौतम! नरक गति जघन्य एक समय और उत्कृष्ट बारह मुहूर्त तक नैरयिक जीवों की उत्पत्ति से रहित कही गई है। अर्थात् बारह मुहूर्त तक नरक में कोई जीव उत्पन्न नहीं होता है। तिरिय गई णं भंते! केवइयं कालं विरहिया उववाएणं पण्णत्ता? गोयमा! जहण्णेणं एगं समयं, उक्कोसेणं बारस मुहुत्ता। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! तिर्यंच गति कितने काल तक उपपात से विरहित-उत्पत्ति से रहित कही गई है? ... उत्तर - हे गौतम! तिर्यंच गति जघन्य एक समय और उत्कृष्ट बारह मुहूर्त तक उपपात से विरहित कही गयी है। मणुय गई णं भंते! केवइयं कालं विरहिया उववाएणं पण्णत्ता? गोयमा! जहण्णेणं एगं समयं, उक्कोसेणं बारस मुहुत्ता। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! मनुष्य गति कितने काल तक जीवों की उत्पत्ति से रहित कही गई है? उत्तर - हे गौतम! मनुष्य गति जघन्य एक समय और उत्कृष्ट बारह मुहूर्त तक उपपात से विरहित कही गई है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004094
Book TitlePragnapana Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages414
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size9 MB
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