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________________ छटुं वक्कंती पयं छठा व्युत्क्रांति पद उत्थानिका (उत्क्षेप) - पण्णवणा सूत्र के छठे पद का नाम "वक्कंती" पद है। इसकी संस्कृत छाया 'व्युत्क्रान्ति' होती है। इसकी व्युत्पत्ति इस प्रकार है - संस्कृत में क्रमु धातु है 'क्रमु पादविक्षेपे'। क्राम्यति अथवा क्रामति इति 'क्रान्ति'। विशेषेण उत् प्राबल्येन क्रान्ति इति व्युत्क्रान्तिः। जिसका अर्थ है जीव का किसी गति में जाना और वहाँ आना जिस पद में बताया जाता हो उस पद का नाम व्युत्क्रान्ति पद है अर्थात् जीवों की गति आगति बताना। इस पद में आठ द्वारों के माध्यम से गति आगति की विचारणा की गयी है। आठ द्वारों का नाम और संक्षिप्त अर्थ यह है - १. द्वादश द्वार (जीवों का उत्पाद और उद्वर्तना का विरहकाल) २. चतुर्विंशति द्वार - (जीव के प्रभेदों के उपपात और उद्वर्तना का विरहकाल) ३. सान्तर द्वार - (जीव निरन्तर उत्पन्न होते हैं या सान्तर) ४. एक समय द्वार (एक समय में कितने जीव उत्पन्न होते हैं और वहाँ से उद्वर्तित होते हैं इसका विचार) ५. कुतः द्वार (जीव कहाँ कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं) ६. उद्वर्तना द्वार (जीव मरकर किस गति में उत्पन्न होता है ?) ७. पारभविक आयुष्य द्वार (जीव वर्तमान भव में अगले भव का आयुष्य कब बांधता है इसकी विचारणा) ८. आकर्ष द्वार (जीव जब परभव का आयुष्य बान्धता है तब आयुष्य के साथ ये छह बोल भी बन्धते हैं यथा - १. जाति नाम २. गति नाम ३. स्थिति नाम ४. अवगाहना नाम ५. प्रदेश नाम और ६. अनुभाग (अनुभाव) जीव इन छह बोलों के साथ आयुष्य को कितने आकर्ष के द्वारा बान्धता है। आकर्ष (खींचना) एक से लेकर आठ तक होते हैं। अन्त में एक से लेकर आठ आकर्षों से आयुबन्ध करने वालों का अल्प बहुत्व बतलाया गया है। इस व्युत्क्रान्ति पद का दूसरा नाम "उपपात उद्वर्तना पद" भी कहा जाता है। पांचवें पद में औदयिक, क्षायोपशमिक और क्षायिक भाव के आश्रित पर्यायों के परिमाण का निर्णय किया गया है। अब इस छठे व्युत्क्रान्ति पद में औदयिक और क्षायोपशमिक भाव संबंधी प्राणियों के उपपात और विरह आदि का विचार आठ द्वारों से किया जाता है। जिसकी संग्रहणी गाथा इस प्रकार है - बारस चउवीसाइं सअंतरं एगसमय कत्तो य। उबट्टण परभवियाउयं च अद्वैव आगरिसा॥१॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004094
Book TitlePragnapana Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages414
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size9 MB
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