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________________ १६६ प्रज्ञापना सूत्र ___ जघन्य प्रदेशी स्कन्धों के पर्याय जहण्णपएसियाणं भंते! खंधाणं केवइया पजवा पण्णत्ता? . गोयमा! अणंता पजवा पण्णत्ता। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! जघन्य प्रदेशी स्कन्धों के पर्याय कितने कहे गए हैं? उत्तर - हे गौतम! जघन्य प्रदेशी स्कन्धों के पर्याय अनन्त कहे गये हैं। सेकेणटेणं भंते! एवं वुच्चइ जहण्णपएसियाणं खंधाणं अणंता पज्जवा पण्णता? गोयमा! जहण्णपएसिए खंधे जहण्णपएसियस्स खंधस्स दव्वट्ठयाए तुल्ले, पएसट्ठयाए तुल्ले, ओगाहणट्ठयाए सिय हीणे, सिय तुल्ले, सिय अन्भिहिए। जइ हीणे, पएसहीणे, अह अब्भहिए पएसअब्भहिए। ठिईए चउट्ठाणवडिए। वण्ण गंध रस उवरिल्ल चउ फास पज्जवेहिं छट्ठाणवडिए। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि जघन्य प्रदेशी स्कन्धों के पर्याय अनन्त हैं ? उत्तर - हे गौतम! एक जघन्य प्रदेशी स्कन्ध दूसरे जघन्य प्रदेशी स्कन्ध से द्रव्य की अपेक्षा से तुल्य है, प्रदेशों की अपेक्षा से भी तुल्य है, अवगाहना की अपेक्षा से कदाचित् हीन है, कदाचित् तुल्य हैं और कदाचित् अधिक है। यदि हीन हो तो एक प्रदेश हीन होता है और यदि अधिक हो तो भी एक प्रदेश अधिक होता है। स्थिति की अपेक्षा से चतुःस्थानपतित है और वर्ण, गन्ध, रस तथा उपर्युक्त चार स्पर्शों के पर्यायों की अपेक्षा से षट्स्थानपतित है। उत्कृष्ट प्रदेशी स्कन्धों के पर्याय उक्कोसपएसियाणं भंते! खंधाणं केवइया पजवा पण्णत्ता? गोयमा! अणंता पजवा पण्णत्ता। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! उत्कृष्ट प्रदेशी स्कन्धों के पर्याय कितने कहे गए हैं ? उत्तर - हे गौतम! उत्कृष्ट प्रदेशी स्कन्धों के पर्याय अनन्त कहे गए हैं। से केणटेणं भंते! एवं वुच्चइ उक्कोसपएसियाणं खंधाणं अणंता पजवा पण्णत्ता? गोयमा! उक्कोसपएसिए खंधे उक्कोसपएसियस्स खंधस्स दव्वट्ठयाए तुल्ले, पएसट्ठयाए तुल्ले, ओगाहणट्ठयाए चउट्ठाणवडिए, ठिईए चउट्ठाणवडिए, वण्णाइ अट्ठ फास पजवेहि य छट्ठाणवडिए। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004094
Book TitlePragnapana Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages414
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size9 MB
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