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________________ पांचवां विशेष पद - मध्यम प्रदेशी स्कन्धों के पर्याय १६७ भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! किस कारण से आप ऐसा कहते हैं कि उत्कृष्ट प्रदेशी स्कन्धों के पर्याय अनन्त कहे गये हैं ? उत्तर - हे गौतम! एक उत्कृष्ट प्रदेशी स्कन्ध, दूसरे उत्कृष्ट प्रदेशी स्कन्ध से द्रव्य की अपेक्षा से तुल्य है, प्रदेशों की अपेक्षा से भी तुल्य है, अवगाहना की अपेक्षा से चतुःस्थानपतित है, स्थिति की अपेक्षा से भी चतुःस्थानपतित है, किन्तु वर्णादि तथा अष्टस्पर्शों के पर्यायों की अपेक्षा से षट्स्थानपतित है। विवेचन - उत्कृष्ट प्रदेशी स्कन्ध नियमा बादर परिणाम परिणत होने से उसमें वर्णादि २० ही बोल होते हैं। परन्तु ये संपूर्ण लोक व्यापी नहीं होते हैं। अवगाहना लोक के असंख्यातवें भाग जितनी होने से चउट्ठाणवडिया फर्क पड़ सकता है। उत्कृष्ट प्रदेशी स्कन्धों में आठ स्पर्श कैसे होते हैं ? अनेक परमाणु आदि में चार स्पर्श ही पाये जाते हैं। परन्तु अनन्त परमाणु का संयोग मिलने पर बादर परिणाम आ जाता है। अत: कर्कशादि संयोगजन्य चार स्पर्श उत्पन्न हो जाते हैं। शीतादि चार स्पर्श तो स्वाभाविक हैं व कर्कशादि चार स्पर्श संयोगजन्य होने से बादर परिणाम परिणत होने पर स्पर्शनेन्द्रिय को कर्कशादि रूप से अनुभव होने लगते हैं। जैसे गुड़, कफ का हेतु है। नागर (सूंठ) पित्त का हेतु है। लेकिन दोनों के मिश्रित होने पर कफपित्त दोनों के नाशक होते हैं। वैसे ही पुद्गल के संयोग से चार स्पर्श उत्पन्न हो जाते हैं। पुद्गलों का विचित्र परिणमन होता है। जैसे घड़ी के एक-एक पुर्जे में चलने रूप शक्ति नहीं होती। किन्तु सभी पुों को यथावत् स्थिति करने से वह समय बताने लग जाती है। सूत के एक-एक धागे में हाथी को बांधने की शक्ति नहीं होती पर उसी से बने मजबूत रस्से से वह कार्य हो जाता है। इसी प्रकार अनेक परमाणुओं के संयोग से शेष चार स्पर्श उत्पन्न होते हैं। परमाणु से असंख्यात प्रदेशी स्कन्ध तक तो चौफरसी होते हैं तथा और अधिक परमाणु इकट्ठे होने पर (बादर परिणाम परिणत होने पर) अट्ठ फरसी हो जाते हैं। फिर और अधिक परमाणु मिलने पर चार स्पर्शी हो जाते हैं जैसे भाषा मन आदि के स्कन्ध। इससे भी अधिक परमाणु इकट्ठे होवे तो अट्ठस्पर्शी हो जाते हैं। क्योंकि उत्कृष्ट प्रदेशी स्कन्ध को अट्ठस्पर्शी बताया गया है। मध्यम प्रदेशी स्कन्धों के पर्याय अजहण्णमणुक्कोसपएसियाणं भंते! खंधाणं केवइया पजवा पण्णत्ता? गोयमा! अणंता पजवा पण्णत्ता। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! मध्यम प्रदेशी स्कन्धों के पर्याय कितने कहे गए हैं ? उत्तर - हे गौतम! मध्यम प्रदेशी स्कन्धों के पर्याय अनन्त कहे गए हैं। .. से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ अजहण्णमणुक्कोसपएसियाणं खंधाणं अणंता Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004094
Book TitlePragnapana Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages414
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size9 MB
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