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________________ पांचवां विशेष पद - जघन्य गुण शीत अनंत प्रदेशी स्कन्धों के पर्याय मणुक्कोसगुणसीए वि एवं चेव, णवरं सट्टाणे छट्टाणवडिए । एवं उसिण णिद्ध लुक्खे जहा सीए । परमाणु पुग्गलस्स तहेव पडिवक्खो सव्वेसिं ण भण्णइति भाणियव्वं ॥ २७५ ॥ कठिन शब्दार्श पडिवक्खो - प्रतिपक्ष । - भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि जघन्य गुण शीत अनन्त प्रदेशी स्कन्धों के पर्याय अनन्त कहे गये हैं ? १६५ उत्तर - हे गौतम! एक जघन्य गुण शीत अनन्त प्रदेशी स्कन्ध, दूसरे जघन्य गुण शीत अनन्त प्रदेशी स्कन्ध से द्रव्य की अपेक्षा से तुल्य है, प्रदेशों की अपेक्षा से षट्स्थानपतित है, अवगाहना की अपेक्षा से चतुःस्थानपतित है, स्थिति की अपेक्षा से चतुः स्थानपतित है, वर्णादि के पर्यायों की अपेक्षा से षट्स्थानपतित है, शीत स्पर्श के पर्यायों की अपेक्षा से तुल्य है और शेष सात स्पर्शों के पर्यायों की अपेक्षा से षट्स्थानपतित है ! इसी प्रकार उत्कृष्ट गुण शीत अनन्त प्रदेशी स्कन्धों के पर्यायों के विषय में भी कह देना चाहिए । मध्यम गुण शीत अनन्त प्रदेशी स्कन्धों की पर्याय - सम्बन्धी प्ररूपणा भी इसी प्रकार करनी चाहिए। विशेषता यह है कि स्वस्थान में षट्स्थानपतित है। जिस प्रकार जघन्यादि युक्त शीत स्पर्श-स्कन्धों के पर्यायों के विषय में कहा गया है, उसी प्रकार उष्ण स्निग्ध और रूक्ष स्पर्शों वाले उन उन स्कन्धों के पर्यायों के विषय में भी कह देना चाहिए। इसी प्रकार परमाणु पुद्गल में इन सभी का प्रतिपक्ष नहीं कहा जाता, यह कहना चाहिए। विवेचन प्रस्तुत सूत्र में काला आदि वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्शों के परमाणु पुद्गलों, द्विप्रदेशी से संख्यात - असंख्यात - अनन्त प्रदेशी स्कन्धों तक के पर्यायों की प्ररूपणा की गई है। Jain Education International परस्पर विरोधी गन्ध, रस और स्पर्श का परमाणु पुद्गल में अभाव - जिस परमाणु पुद्गल में सुरभिगन्ध होती है, उसमें दुरभिगन्ध नहीं होती और जिसमें दुरभिगन्ध होती है, उसमें सुरभिगन्ध नहीं होती, क्योंकि परमाणु एक गन्ध वाला ही होता है। इसलिए जिस गन्ध का कथन किया जाए वहाँ दूसरी गन्ध का अभाव कहना चाहिए। इसी प्रकार जहाँ एक रस का कथन हो, वहाँ दूसरे रसों का अभाव समझना चाहिए। अर्थात् - जहाँ तिक्त रस हो, वहाँ शेष कटु आदि रस नहीं होते, क्योंकि उनमें परस्पर विरोध है। इसी प्रकार जहाँ पुद्गल परमाणु में शीत स्पर्श का कथन हो, वहाँ उष्ण स्पर्श का कथन नहीं करना चाहिए, क्योंकि ये दोनों स्पर्श परस्पर विरोधी हैं। इसी प्रकार अन्यान्य स्पर्शों के बारे में समझ लेना चाहिए। जैसे- स्निग्ध और रूक्ष, मृदु और कर्कश, लघु और गुरु परस्पर विरोधी स्पर्श हैं। एक ही परमाणु में ये परस्पर विरोधी स्पर्श भी नहीं रहते । अतएव परमाणु में इनका उल्लेख नहीं करना चाहिए। For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004094
Book TitlePragnapana Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages414
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size9 MB
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