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________________ १६० प्रज्ञापना सूत्र उत्तर - हे गौतम! जघन्य गुण कर्कश अनन्त प्रदेशी स्कन्धों के पर्याय अनन्त कहे गए हैं। से केणद्वेणं भंते! एवं वुच्चइ जहण्णगुणकक्खडाणं अणंतपएसियाणं खंधाणं अणंता पजवा पण्णत्ता? गोयमा! जहण्णगुणकक्खडे अणंतपएसिए जहण्णगुणकक्खडस्स अणंतपएसियस्स दव्वट्ठयाए तुल्ले, पएसट्टयाए छट्ठाणवडिए, ओगाहणट्ठयाए चउट्ठाणवडिए, ठिईए चउट्ठाणवडिए, वण्ण गंध रसेहिं छट्ठाणवडिए, कक्खडफासपज्जवेहिं तुल्ले, अवसेसेहिं सत्तफासपज्जवेहिं छट्ठाणवडिए। एवं उक्कोसगुणकक्खडे वि। अजहण्णमणुक्कोसगुणकक्खडे वि एवं चेव, णवरं सट्ठाणे छट्ठाणवडिए। एवं मउय गरुय लहुए वि भाणियब्वे। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! किस कारण से आप ऐसा कहते हैं कि जघन्य गुण कर्कश अनन्तप्रदेशी स्कन्धों के पर्याय अनन्त हैं? उत्तर - हे गौतम! एक जघन्य गुण कर्कश अनन्त प्रदेशी स्कन्ध, दूसरे जघन्य गुण कर्कश अनन्तप्रदेशी स्कन्ध से द्रव्य की अपेक्षा से तुल्य है, प्रदेशों की अपेक्षा से षट्स्थानपतित है, अवगाहना की अपेक्षा से चतुःस्थामपतित है, स्थिति की अपेक्षा से चतुःस्थानपतित है एवं वर्ण, गन्ध एवं रस की अपेक्षा से षट्स्थानपतित है, कर्कशस्पर्श के पर्यायों की अपेक्षा से तुल्य है और अवशिष्ट सात स्पर्शों के पर्यायों की अपेक्षा से षट्स्थानपतित है। इसी प्रकार उत्कृष्ट गुण कर्कश अनन्त प्रदेशी स्कन्धों के पर्यायों के विषय में भी समझ लेना चाहिए। मध्यम गुण कर्कश अनन्त प्रदेशी स्कन्धों का पर्याय विषयक कथन भी इसी प्रकार करना चाहिए। विशेषता यह है कि स्वस्थान में षट्स्थानपतित है। ___मृदु, गुरु और लघु स्पर्श वाले अनन्तप्रदेशी स्कन्ध के पर्यायों के विषय में भी इसी प्रकार कथन कर देना चाहिए। जघन्य गुण शीत परमाणु पुद्गलों के पर्याय जहण्णगुणसीयाणं भंते! परमाणु पुग्गलाणं केवइया पजवा पण्णत्ता? गोयमा! अणंता पजवा पण्णत्ता। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! जघन्य गुण शीत (ठण्डा) परमाणु पुद्गलों के पर्याय कितने कहे गए हैं? उत्तर - हे गौतम! जघन्य गुण शीत परमाणु पुद्गलों के पर्याय अनन्त कहे गए हैं। For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.004094
Book TitlePragnapana Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages414
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size9 MB
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