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________________ पांचवां विशेष पद - जघन्य गुण कर्कश अनंत प्रदेशी स्कन्धों के पर्याय १५९ भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! किस कारण से आप ऐसा कहते हैं कि जघन्य गुण काले अनन्तप्रदेशी स्कन्धों के पर्याय अनन्त हैं ? . उत्तर - हे गौतम! एक जघन्य गुण काला अनन्त प्रदेशी स्कन्ध, दूसरे जघन्य गुण काले अनन्त प्रदेशी स्कन्ध से द्रव्य की अपेक्षा से तुल्य है, प्रदेशों की अपेक्षा से षट्स्थानपतित है, अवगाहना की अपेक्षा से चतुःस्थानपतित है, स्थिति की अपेक्षा से चतुःस्थानपतित है, काले वर्ण के पर्यायों की अपेक्षा से तुल्य है तथा शेष वर्ण आदि एवं अष्टस्पर्शों की अपेक्षा से षट्स्थानपतित है। इसी प्रकार उत्कृष्टगुण काले अनन्त प्रदेशी स्कन्धों के पर्यायों के विषय में भी जानना चाहिए। इसी प्रकार मध्यमगुण काले अनन्त प्रदेशी स्कन्धों का पर्याय-विषयक कथन भी कर देना चाहिए। इसी प्रकार नील, रक्त, हारिद्र (पीत), शुक्ल (श्वेत), सुगन्ध, दुर्गन्ध, तिक्त (तीखा), कटु, . काषाय, आम्ल (खट्टा), मधुर रस के पर्यायों से भी अनन्त प्रदेशी स्कन्धों की पर्याय सम्बन्धी वक्तव्यता कह देनी चाहिए। विशेषता यह है कि सुगन्ध वाले परमाणु पुद्गल में दुर्गन्ध नहीं कहना चाहिए और दुर्गन्ध वाले परमाणु पुद्गल में सुगन्ध नहीं कहना चाहिए। तिक्त (तीखे) रस वाले में शेष रस का कथन नहीं करना चाहिए, कटु आदि रसों के विषय में भी ऐसा ही समझना चाहिए। शेष सब बातें उसी तरह पूर्ववत् ही हैं। विवेचन - कृष्ण, नील आदि पांच वर्णों, दो प्रकार के गन्धों, पांच प्रकार के रसों और आठ प्रकार के स्पर्शों के प्रत्येक के तरतमभाव की अपेक्षा से अनन्त-अनन्त विकल्प होते हैं। तदनुसार काले आदि वर्ण अनन्त-अनन्त प्रकार के हैं। ____काले वर्ण की सबसे कम मात्रा जिसमें पाई जाती है, वह पुद्गल जघन्यगुण काला कहलाता है। यहाँ गुण. शब्द अंश या मात्रा के अर्थ में प्रयुक्त है। जघन्यगुण का अर्थ है - सबसे कम अंश। दूसरे शब्दों में यों कह सकते हैं कि जिस पुद्गल में केवल एक डिग्री का कालापन हो-जिससे कम कालापन का सम्भव ही न हो, वह जघन्यगुण काला समझना चाहिए। जिसमें कालेपन के सबसे अधिक अंश पाए जाएँ, वह उत्कृष्टगुण काला है। एक अंश कालेपन से अधिक और सबसे अधिक अन्तिम कालेपन से एक अंश कम तक का काला मध्यमगुणकाला कहलाता है। काले वर्ण की तरह ही जघन्य-उत्कृष्ट-मध्यमगुणयुक्त नीलादि वर्गों.तथा गन्धों, रसों एवं स्पर्शों के विषय में समझना चाहिए। ... जघन्य गुण कर्कश अनंत प्रदेशी स्कन्धों के पर्याय जहण्णगुणकक्खडाणं अणंतपएसियाणं खंधाणं केवइया पजवा पण्णत्ता? गोयमा! अणंता पज्जवा पण्णत्ता। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! जघन्य गुण कर्कश अनन्तप्रदेशी स्कन्धों के पर्याय कितने कहे गए हैं ? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004094
Book TitlePragnapana Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages414
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size9 MB
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