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________________ १५८ प्रज्ञापना सूत्र 40 . . . भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! किस कारण से आप ऐसा कहते हैं कि जघन्यगुण काले असंख्यात प्रदेशी स्कन्धों के पर्याय अनन्त कहे गये हैं ? । उत्तर - हे गौतम! एक जघन्यगुण काला असंख्यात प्रदेशी पुद्गल स्कन्ध, दूसरे जघन्य गुण काले असंख्यात प्रदेशी पुद्गल स्कन्ध से द्रव्य की अपेक्षा से तुल्य है, प्रदेशों की अपेक्षा से चतुःस्थानपतित हैं, स्थिति की अपेक्षा से चतुःस्थानपतित है, अवगाहना की अपेक्षा से चतुःस्थानपतित है तथा काले वर्ण के पर्यायों की अपेक्षा से तुल्य है और शेष वर्ण आदि तथा ऊपर कहे हुए चार स्पर्शों की अपेक्षा से षट्स्थानपतित है। इसी प्रकार उत्कृष्ट गुण काले असंख्यातप्रदेशी स्कन्धों के पर्यायों-विषय में कथन करना चाहिए। इसी प्रकार मध्यम गुण काले असंख्यात प्रदेशी स्कन्धों के पर्यायों के विषय में भी कह देना चाहिए। विशेषता इतनी है कि वह स्वस्थान में षट्स्थानपतित है। जधन्य गुण काले अनंत प्रदेशी स्कन्धों के पर्याय जहण्णगुणकालगाणं भंते! अणंतपएसियाणं पुग्गलाणं केवइया पजवा पण्णत्ता?' गोयमा! अणंता पजवा पण्णत्ता। भावार्थ - प्रश्न - हे. भगवन् ! जघन्य गुण काले अनन्त प्रदेशी स्कन्धों के पर्याय कितने कहे गए हैं ? उत्तर - हे गौतम! जघन्य गुण काले अनन्त प्रदेशी स्कन्धों के पर्याय अनन्त कहे गए हैं। से केणद्वेणं भंते! एवं वुच्चइ जहण्णगुणकालगाणं अणंत पएसियाणं पुग्गलाणं अणंता पजवा पण्णत्ता? गोयमा! जहण्णगुणकालए अणंतपएसिए जहण्णगुणकालगस्स अणंतपएसियस्स दव्वट्ठयाए तुल्ले, पएसट्ठयाए छट्ठाणवडिए, ओगाहणट्ठयाए चउट्ठाणवडिए, ठिईए चउट्ठाणवडिए, कालवण्णपजवेहिं तुल्ले, अवसेसेहिं वण्णाइ अट्ट फासेहि य छट्ठाणवडिए। ___ एवं उक्कोसगुणकालए वि। अजहण्णमणुक्कोसगुणकालए वि एवं चेव, णवरं सट्टाणे छट्ठाणवडिए। एवं णील-लोहिय-हालिद्द-सुक्किल-सुब्भिगंध-दुब्भिगंध-तित्तकडुय-कसाय-अंबिल-महुर-रसपजवेहि य वत्तव्वया भाणियव्वा, णवरं परमाणुपुग्गलस्स सुब्भिगंधस्स दुब्भिगंधो ण भण्णइ, दुब्भिगंधस्स सुब्भिगंधो ण भण्णइ, तित्तस्स अवसेसा ण भण्णंति, एवं कडुयाईण वि, सेसं तं चेव। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004094
Book TitlePragnapana Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages414
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size9 MB
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