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णमोत्थु णं समणस्स भगवओ महावीरस्स
श्रीमदार्यश्यामाचार्य विरचित
प्रज्ञापना सूत्र
(मूल पाठ, कठिन शब्दार्थ, भावार्थ और विवेचन सहित)
. भाग - २
चउत्थं ठिइपयं
चौथा स्थिति पद उत्क्षेप ( उत्थानिका)- प्रज्ञापना सूत्र के इस चौथे पद का नाम स्थिति पद है तो सहज ही यह प्रश्न होता है कि स्थिति किसे कहते हैं ? इस का समाधान यह है कि टीकाकार ने "स्थिति" शब्द की व्युत्पत्ति इस प्रकार की है - "स्थीयते अवस्थीयते अनया आयुष्कर्मानुभूत्या इति स्थितिः। स्थितिः आयुष्कर्मानुभूतिः जीवनं इति पर्यायाः।"
अर्थात् - जीवों का अवस्थान स्थिति कहलाता है अर्थात् चार गति के जीवों के विविध पर्याएँ होती है उनकी आयु का विचार करना स्थिति कहलाता है वैसे तो जीव द्रव्य (आत्मा) नित्य है परन्तु वह चारों गतियों में नाना रूप (नाना जन्म) धारण करता है। वे पर्याएँ अनित्य हैं, वे कभी न कभी नष्ट होती ही हैं। इस कारण यहाँ उनकी स्थिति का विचार किया गया है। स्थिति शब्द का व्युत्पत्ति जन्य अर्थ भी इस प्रकार का है कि आयु कर्म की अनुभूति करता हुआ जीव जिस पर्याय में अवस्थित रहता है वह स्थिति है। इसलिये स्थिति, आयुकर्मानुभूति, जीवन ये तीनों शब्द एकार्थक एवं पर्यायवाची हैं।
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