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________________ ८० प्रज्ञापना सूत्र ****************************************************************************** * * * * * * पद्मकंद, उत्पलिनी कंद और झिल्ली ये सब अनन्त जीवों वाले कहे गये हैं किन्तु भिस और मृणाल में एक एक जीव होते है ॥ ४२॥ पलाण्डूकन्द, लहसुनकन्द, कंदलीकन्द और कुसुम्बक प्रत्येक जीव वाले होते हैं। अन्य जो भी इस प्रकार की वनस्पतियाँ है उन्हें प्रत्येक जीवाश्रित समझना चाहिए॥४३॥ पद्म, उत्पल, नलिन, सुभग, सौगंधिक, अरविन्द, कोकनद, शतपत्र और सहस्रपत्र-इनके वृन्त (डंठल) बाहर के पत्ते और कर्णिका, ये तीनों अवयव शामिल एक जीव वाले होते हैं। इनके भीतरी पत्ते, केसर और मिंजा भी एक जीव वाले होते हैं ॥ ४४-४५॥ . वेणु (बांस), नल, इक्षुवाटिका, समासइक्षु और इक्कड, रंड, करकर, सूंठ विहंगु, तृण और पर्व वाली वनस्पतियों के जो अक्षि (आंख) पर्व (गांठ) और परिमोटक (पर्व को परिवेष्टक करने वाला भाग) ये सब एक जीव वाले होते हैं। इनके पत्ते एक एक जीवात्मक और पुष्प अनेक जीवात्मक होते हैं॥४६-४७॥ पुष्यफल, कालिंग, तुम्ब, त्रपुष, एलवालुक, वालुक, घोषातक, पटोल, तिन्दुक, तिंदूस इनके वृन्त (डंठल) मांस-गर्भ और कटाह (ऊपर की छाल) एक जीव वाले होते हैं। पत्ते एक जीवात्मक होते है। केसर सहित और केसर रहित बीज एक जीवाश्रित होता है॥ ४८-४९॥ सप्फाक, सध्यात, उव्वेहलिया, कुहण तथा कंदुक्क ये सब अनन्त जीवात्मक होते हैं। किन्तु कंडुक्क (कंडुक्य) वनस्पति में भजना (विकल्प) है॥५०॥ विवेचन - साधारण (अनन्तकायिक) वनस्पति के वर्णन में उत्तराध्ययन सूत्र अध्ययन ३६ गाथा नम्बर ९८ में 'पलण्डु लसणकंदे य' शब्द दिया है। परन्तु पनवणा सूत्र प्रथम पद में उपलब्ध सब प्रतियों में ये दोनों शब्द देखने में नहीं आते हैं इसका क्या कारण है इसका रहस्य तो बहुश्रुत ही जान सकते हैं। परन्तु संभावना ऐसी लगती है कि शायद ये दोनों शब्द लिपि दोष के कारण छूट गये हैं। परन्तु यह साधारण वनस्पतिकाय (अनन्तकायिक) ही हैं। अथवा ये दोनों नाम किसी प्रत्येक वनस्पति के हो सकते हैं साधारण वनस्पति में आये हुए इन नामों को उपर्युक्त नामों से भिन्न समझना चाहिये। सरीखे नाम वाली वनस्पतियाँ प्रत्येक काय एवं अनन्त काय दोनों में हो सकती है लक्षणों के आधार पर उनके प्रत्येक काय व अनन्त काय को समझना चाहिये। यहाँ पर गाथा नं. ४३ में पलंडु और ल्हसुणकंद को परित्तजीवी बताया है इसका खुलासा टीकाकार ने कुछ भी नहीं किया है किन्तु "पलण्डुकन्दो लसुनकन्दः कन्दलीकन्दको वनस्पतिविशेष" इतना ही लिखा है। इन सब का निष्कर्ष यह निकलता है कि उत्तराध्ययन सूत्र वर्णित "पलण्डु" शब्द का अर्थ वर्तमान में प्रचलित कान्दा (प्याज) और लहसुन है। अभिधान राजेन्द्र कोष में भी इस शब्द का Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004093
Book TitlePragnapana Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages414
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size9 MB
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