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प्रथम प्रज्ञापना पद - वनस्पतिकायिक जीव प्रज्ञापना
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पउमुप्पलिणी कंदे, अंतरकंदे तहेव झिल्ली य।
एए अनंत जीवा, एगो जीवो बिस (भिस) मुणाले ॥ ४२ ॥ पलंडू- ल्हसुणकंदे य, कंदली य कुडुंबए (कुसुंबए) । एए परित्त जीवा, जे यावण्णे तहाविहा ॥ ४३ ॥ पमुप्पल लिणाणं, सुभग सोगंधियाण य । अरविंद - कोकणाणं, सयवत्त - सहस्सपत्ताणं ॥ ४४ ॥ विंट बाहिर पत्ता य, कण्णिया चेव एग जीवस्स । अब्धिंतरगा पत्ता, पत्तेयं केसरा मिंजा ॥ ४५ ॥ वेणु-लल- इक्खुवाडिय, समासइक्खू य इक्कडे रंडे । करकर सुंठि विहंगू (विहुंगुं ), तणाण तह पव्वगाणं च ॥ ४६ ॥ अच्छिं पव्वं बलिमोडओ य, एगस्स होंति जीवस्स । पत्तेयं पत्ताइं पुप्फाई, अणेगजीवाइं ॥ ४७ ॥ पुस्सफलं कालिंगं तुंबं, तउसेल वालु वालुंकं । घोसाडयं पडोलं, तिंदुयं चेव तेंदूसं ॥ ४८ ॥ विंट समंस - कडाहं एयाइं हवंति एगजीवस्स । पत्तेयं पत्ताई सकेसरमकेसरं मिंजा ॥ ४९ ॥ सफा-सज्जा उव्वेहलिया य कुहण कंदुक्के ।
एए अनंतजीवा कंडुक्के (कुंडुक्के ) होइ भयणा उ ॥ ५० ॥
. कठिन शब्दार्थ - जलया - जल में पैदा होने वाले, थलया स्थलज - जमीन पर पैदा होने वाले,
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विटबद्धा - डंठल से बन्धे हुए, णालबद्धा - नाल से बन्धे हुए, णिहुय - थोहर के फूल, झिल्ली - एक कन्द का नाम, बिस (भिस) कमल की नाल, मुणाल- मृणाल - कमल गट्टे को तोड़ने पर उसका तन्तु जो पीछे रह जाता है, पलंडु - प्याज - कान्दा, ल्हसुण - लहसुन, कंदली - वनस्पति विशेष, मिंजा - फूल का अन्दरी भाग, कण्णिया कर्णिका-फूल का ठीक मध्य भाग ।
भावार्थ - जलज - जल में उत्पन्न होने वाले, स्थलज - स्थल में उत्पन्न होने वाले, वृन्तबद्ध या नालबद्ध पुष्प संख्यात जीवों वाले, असंख्यात जीवों वाले और अनन्त जीवों वाले समझने चाहिये ॥ ४० ॥ जो कोई नालिकाबद्ध पुष्प हों वे संख्यात जीव वाले कहे गये हैं। थूहर के फूल और इसी प्रकार अन्य जो फूल हों वे अनंत जीवों वाले समझने चाहिये ॥ ४१ ॥
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