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________________ ७८. प्रज्ञापना सूत्र ******** +NKA गूढछिरागं पत्तं सच्छीरं, जंच होइ णिच्छीरं। जंपिय पणद्वसंधिं, अणंतजीवं वियाणाहि ॥३९॥ कठिन शब्दार्थ - चक्कागं - चक्राकार, भज्जमाणस्स - भंग करने (तोड़ने) पर, गंठी - गांठ, चुण्णघणो - चूर्ण से सघन, पुढवीसरिसेण - पृथ्वी के समान, गूढछिरागं - गूढ़ शिराएँ, सच्छीरं - सक्षीर-दूध वाला, णिच्छीरं - निःक्षीर-दूध रहित, पणट्ठसंधिं - प्रनष्ट सन्धि। भावार्थ - जिस को भंग करने (तोड़ने) पर भंग स्थान चक्राकार (सम) हो अथवा जिसकी गांठ चूर्ण (रज) से व्याप्त हो अथवा पृथ्वी के समान भेद हो उसे अनन्त जीव वाली वनस्पति जानना चाहिए॥३८॥ __जिसकी शिराएं गूढ (गुप्त) हों, जो दूध वाला हो अथवा दूध रहित हो, जिसकी संधि नष्ट हो उसे अनन्त जीवों वाला जानना चाहिए॥३९॥ विवेचन - गाथा नं. ३८ में अनन्तकायिक वनस्पति के तीन लक्षण बताए गये हैं। यथा - १. जिस वनस्पति के तोड़ने पर चक्राकार सम भंग हो। २. जिस वनस्पति को तोड़ने पर जिसकी गांठ . अथवा गांठ स्थानीय स्थान पूर्ण (पृथ्वी की रजकण) सरीखे से व्याप्त हो। ३. जैसे किसी स्थान पर पानी हो और वह पानी सूर्य की किरणों से सूख गया हो फिर उस जगह पतली पपड़ी जम जाती है। उस पृथ्वी के टुकड़े के समान जिसका भंग हो। ___ इन तीन लक्षणों में से कोई भी लक्षण पाया जाता हो उसे अनन्त जीविक वनस्पति समझना चाहिए। गाथा नं. ३९ में अनन्तकायिक पत्ते का लक्षण बतलाया गया है। जिस पत्ते की शिराएँ (मोटी मोटी नाड़ियाँ) दिखाई न देती हों अथवा जिस पत्ते को तोड़ने पर उसमें से दूध निकलता हो अथवा न निकलता हो तथा बीच का भाग भी स्पष्ट न दिखाई देता हो उस पत्ते को अनन्तजीवि समझना चाहिए। यहाँ पर गांठ के सघन चूर्ण होने के उदाहरण के रूप में थोहर आदि समझ सकते हैं। हरी . कच्ची वनस्पति में दुध निकलने की अवस्था में अनन्तकायिक हो सकते हैं सूख जाने पर प्रत्येककायिक माने जाते हैं। पुष्फा जलया थलया य, विंटबद्धा य णालबद्धा य। संखिजमसंखिज्जा, बोद्धंव्वा अणंतजीवा य॥४०॥ जे केइ णालिया बद्धा, पुप्फा संखिज जीविया भणिया। णिहुया अणंत जीवा, जे यावण्णे तहाविहा॥४१॥ For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.004093
Book TitlePragnapana Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages414
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size9 MB
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