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प्रज्ञापना सूत्र
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जिस पत्र को भंग करने पर हीर-विषम भंग दिखाई दे वह पत्र प्रत्येक जीव वाला है। इसी प्रकार के अन्य जितने भी पत्र हैं, उन्हें भी प्रत्येक जीव वाले समझने चाहिये॥ २६॥
जिस पुष्प को भंग करने पर हीर-विषम भंग दिखाई दे वह पुष्प प्रत्येक जीव वाला है। इसी प्रकार के अन्य जितने भी पुष्प हैं, उन्हें भी प्रत्येक जीव वाले समझने चाहिये॥ २७॥
__जिस फल को भंग करने पर हीर-विषम भंग दिखाई दे वह फल प्रत्येक जीव वाला है। इसी प्रकार के अन्य जितने भी फल हैं, उन्हें भी प्रत्येक जीव वाले समझने चाहिये॥ २८॥
जिस बीज को भंग करने पर हीर-विषम भंग दिखाई दे वह बीज प्रत्येक जीव वाला है। इसी प्रकार के अन्य जितने भी बीज हैं, उन्हें भी प्रत्येक जीव वाले समझने चाहिये॥ २९॥
विवेचन - उपरोक्त गाथाओं में प्रत्येक शरीर वाली वनस्पति का लक्षण बताया है। जिस मूल को भंग करने (तोड़ने) पर हीर-विषम छेद वाली दिखाई दे वह मूल प्रत्येक जीव वाला समझना चाहिए इसी प्रकार कन्द आदि के विषय में भी जानना चाहिए।
उपर्युक्त गाथाओं में प्रवाल को प्रत्येक शरीरी भी बताया है, यद्यपि प्रवाल (कोंपल) अत्यन्त कोमल होने से उसमें अनन्तकाय के लक्षण (सम-भंग होना) पाये जाने से अनन्तकाय में भी माना गया है तथा जिन प्रवालों में प्रत्येक काय के लक्षण (विषम भंग) पाये जाते हो उन्हें प्रत्येक काय में समझना चाहिये। अतः शास्त्रकारों ने दोनों प्रकार के प्रवालों के लक्षण बता दिये हैं।'
जस्स मूलस्स कट्ठाओ, छल्ली बहलयरी भवे। अणंत जीवा उ सा छल्ली, जे यावण्णा तहाविहा॥३०॥ जस्स कंदस्स कट्ठाओ, छल्ली बहलयरी भवे। अणंत जीवा उ सा छल्ली, जे यावण्णा तहाविहा॥३१॥ जस्स खंधस्स कट्ठाओ, छल्ली बहलयरी भवे।। अणंत जीवा उ सा छल्ली, जे यावण्णा तहाविहा॥३२॥ जीसे सालाए कट्ठाओ, छल्ली बहलयरी भवे। अणंत जीवा उ सा छल्ली, जे यावण्णा तहाविहा॥३३॥
कठिन शब्दार्थ - कट्ठाओ - काष्ठ (मध्य भाग में रहा हुआ गर्भ), छल्ली - छाल, बहलयरी - अधिक मोटी।
भावार्थ - जिस मूल के काष्ठ से छाल अधिक मोटी हो वह छाल अनन्त जीव वाली है। इसी प्रकार की अन्य जो भी छाले हैं उन्हें अनंत जीव वाली समझनी चाहिये।।३०॥
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