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प्रथम प्रज्ञापना पद - वनस्पतिकायिक जीव प्रज्ञापना
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जीसे तयाए भग्गाए, हीरो भंगो पदीसइ। परित्त जीवा उ सा तया, जे यावण्णे तहाविहा॥२३॥ जस्स सालस्स भग्गस्स, हीरो भंगो पदीसइ। परित्त जीवे उसे साले, जे यावण्णे तहाविहा॥२४॥ जस्स पवालस्स भग्गस्स, हीरो भंगो पदीसइ। परित्त जीवे उ से पवाले, जे यावण्णे तहाविहा॥२५॥ जस्स पत्तस्स भग्गस्स, हीरो भंगो पदीसइ। परित्त जीवे उ से पत्ते, जे यावण्णे तहाविहा॥२६॥ जस्स पुष्फस्स भग्गस्स, हीरो भंगो पदीसइ। परित्त जीवे उ से पुप्फे, जे यावण्णे तहाविहा॥२७॥ जस्स फलस्स भग्गस्स, हीरो भंगो पदीसइ। परित्त जीवे उ से फले, जे यावण्णे तहाविहा॥२८॥ जस्स बीयस्स भग्गस्स, हीरो भंगो पदीसइ। परित्त जीवे उ से बीए, जे यावण्णे तहाविहा॥२९॥ कठिन शब्दार्थ - हीरो - हीर (विषम छेद), परित्त जीवे - प्रत्येक जीव वाला।
भावार्थ - जिस मूल को भंग करने पर हीर-विषम भंग दिखाई दे वह मूल प्रत्येक जीव वाला है इसी प्रकार के अन्य जितने भी मूल हैं, उन्हें भी प्रत्येक जीव वाले समझने चाहिये॥२०॥
जिस कंद को भंग करने पर हीर-विषम भंग दिखाई दे वह कंद प्रत्येक जीव वाला है। इसी प्रकार के अन्य जितने भी कंद हैं, उन्हें भी प्रत्येक जीव वाले समझने चाहिये॥२१॥
जिस स्कंध को भंग करने पर हीर-विषम भंग दिखाई दे वह स्कंध प्रत्येक जीव वाला है। इसी प्रकार के अन्य जितने भी स्कंध हैं, उन्हें भी प्रत्येक जीव वाले समझने चाहिये॥२२॥ - जिस त्वचा को भंग करने पर हीर-विषम भंग दिखाई दे वह त्वचा प्रत्येक जीव वाली है। इसी प्रकार की अन्य जितनी भी त्वचा हैं, उन्हें भी प्रत्येक जीव वाली समझनी चाहिये॥ २३॥
जिस शाखा को भंग करने पर हीर-विषम भंग दिखाई दे वह शाखा प्रत्येक जीव वाली है। इसी प्रकार की अन्य जितनी भी शाखाएँ हैं, उन्हें भी प्रत्येक जीव वाली समझनी चाहिये॥ २४॥
जिस प्रवाल को भंग करने पर हीर-विषम भंग दिखाई दे वह प्रवाल प्रत्येक जीव वाला है। इसी प्रकार के अन्य जितने भी प्रवाल हैं, उन्हें भी प्रत्येक जीव वाले समझने चाहिये॥२५॥
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