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________________ प्रथम प्रज्ञापना पद - वनस्पतिकायिक जीव प्रज्ञापना ***************************************** ********************************* *-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*--*-*-*-* * * * * * मास-णिफ्फाव-कुलत्थ-आलिसंद-सतीण-पलिमंथा। अयसी-कुसुंभ-कोद्दव-कंगू-रालग-वर सामग-कोदूसा। सण-सरिसव-मूलग बीया। जेयावण्णे तहप्पगारा। से तं ओसहीओ॥४२॥ प्रश्न - औषधियाँ (धान्य) कितने प्रकार की कही गयी हैं ? उत्तर - औषधियाँ अनेक प्रकार की कही गयी है, वे इस प्रकार हैं - १. शाली (चावल की जाति-धान) २. व्रीहि (चावल) ३. गोधूम (गेहूँ) ४. जौ ५. कलाय (मटर) ६. मसूर ७. तिल ८. मूंग ९. माष (उड़द) १०. निष्फाव (वालोर सेमी) ११. कुलत्थ १२. आलिसंद - चवला १३. सतीण - चने की जाति १४. पलिमंथ - ‘चने की जाति १५. अलसी १६. कुसुम्भ १७. कोद्रव १८. कंगू - कांगणी १९. राल २०. वरश्यामाक - साँवाधान २१. कोदूस २२. शण (सन) २३. सरसो और २४ मूलक बीज। ये और इसी प्रकार की अन्य जो वनस्पतियाँ हैं उन्हें औषधि समझना चाहिए। इस प्रकार औषधियाँ कही गयी है। से किं तं जलरुहा ? जलरुहा अणेग विहा पण्णत्ता। तंजहा-उदए, अवए, पणए, सेवाले, कलंबुया, हढे य कसेरुया, कच्छा, भाणी, उप्पले, पउमे, कुमुदे, णलिणे, सुभए, सुगंधिए, पोंडरीए, महापोंडरीए, सयपत्ते, सहस्सपत्ते, कल्हारे, कोकणदे अरविंदे, तामरसे, भिसे, भिसमुणाले, पोक्खले, पोक्खलत्थिभए ०, जे यावण्णे तहप्पगारा। से तं जलरुहा॥ ४३-१॥ भावार्थ - प्रश्न - जलरुह वनस्पतियाँ कितने प्रकार की कही गयी हैं ? उत्तर - जलरुह वनस्पतियाँ अनेक प्रकार की कही गयी हैं। वे इस प्रकार हैं - उदक, अवक, पनक, शैवाल, कलम्बुका, हढ, कसेरुका, कच्छ, भाणी, उत्पल, पद्म, कुमुद, नलिन, सुभग, सौगंधिक, पुण्डरीक, महापुण्डरीक, शतपत्र, सहस्रपत्र, कल्हार, कोकनद, अरविन्द, तामरस, भिस (कमलगट्टा). भिसमृणाल (कमलतंतु), पुष्कर, पुष्करस्थलज (पुष्करास्तिभुक्)। इसी प्रकार की अन्य जो वनस्पतियाँ हैं उन्हें जलरुह समझना चाहिए। इस प्रकार जलरुह कही हैं। विवेचन - 'उत्पल से तामरस तक तथा पुष्कर' ये सभी कमलों की जातियाँ समझनी चाहिये। से किं तं कुहणा ? कुहणा अणेग विहा पण्णत्ता। तंजहा-आए, काए, कुहणे, • पोक्खलत्थिभुए, पोक्खलविभए। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004093
Book TitlePragnapana Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages414
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size9 MB
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