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________________ प्रज्ञापना सूत्र ****** *********************************************************** ** * * * * * * * * * * ** * * * * कुणक्के, दव्वहलिया, सप्काए (सप्याए), सज्झाए, सित्ताए (छत्ताए), वंसी, णहिया कुरए। जे यावण्णे तहप्पगारा।से तं कुहणा।। णाणाविहसंठाणा रुक्खाणं एगजीविया पत्ता। खंधा वि एगजीवा ताल सरल णालिएरीणं॥१॥ जह सगलसरिसवाणं सिलेस मिस्साणं वद्रिया वट्टी। पत्तेयसरीराणं तह होंति सरीरसंघाया॥२॥ जह वा तिलपप्पडिया बहुएहिं तिलेहिं संहिता संती। ... पत्तेय सरीराणं तह होंति सरीरसंघाया॥३॥ से तं पत्तेय सरीर बायर वणस्सइ काइया॥४३-२॥ कठिन शब्दार्थ - सिलेस मिस्साणं - श्लेष द्रव्य से मिश्रित किये हुए, वट्टिया - बट्टी, सरीरसंघाया- शरीर संघात, संहिता - संहत। भावार्थ - प्रश्न - कुहण वनस्पतियाँ कितने प्रकार की कही गयी हैं ? उत्तर - कुहण वनस्पतियाँ अनेक प्रकार की कही गयी हैं। वे इस प्रकार हैं - आय, काय, कुहण, कुनक्क, द्रव्यहलिका, शफाय, सज्झाय, छत्रौक और वंशी नहिता, कुरक। इसी प्रकार की अन्य जो वनस्पतियाँ है उन्हें कुहण समझना चाहिये। इस प्रकार कुहण वनस्पतियाँ कही गयी हैं। वृक्षों (उपलक्षण से गुच्छ, गुल्म आदि) के संस्थान (आकृतियाँ) नाना प्रकार के होते हैं। इनके पत्ते एकजीवक-एकजीव वाले होते हैं और ताल, सरल और नालिकेर (नारियल) प्रमुख वृक्षों के स्कंध भी एक जीव वाले होते हैं जैसे श्लेष द्रव्य से मिश्रित किये हुए समस्त सर्षपों (सरसों के दानों) की वर्ती (बट्टी) एकरूप प्रतीत होती है वैसे ही प्रत्येक शरीर जीवों के शरीर संघात रूप होते हैं अथवा जैसे अनेक तिलों के समुदाय वाली तिलपपडी (तिलपट्टी) होती है वैसे ही प्रत्येक शरीर वनस्पति जीवों के शरीर संघात होते हैं। इस प्रकार प्रत्येक शरीर बादर वनस्पतिकायिक जीव कहे गये हैं। से किं तं साहारण सरीर बायर वणस्सइ काइया? साहारण सरीर बायर वणस्सइ काइया अणेगविहा पण्णत्ता। तंजहा अवए पणए सेवाले, लोहिणी मिहू थिहू थिभगा। अस्सकण्णी सीहकण्णी, सिउंढी ततो मुसुंढी य॥१॥ रुरु कुंडरिया ( कंडुरिया)जीरू, छीरविराली तहेव किट्टी य। हलिद्दा सिंगबेरे य, आलुगा मूलए इ य॥२॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004093
Book TitlePragnapana Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages414
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size9 MB
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