________________
६८
प्रज्ञापना सूत्र
*****
*-*-*
**
*
*
*
*
*
*
*
*
*
*
*
*
*
*
*
*
********
उत्पन्न होते हैं, इत्यादि द्वार बताये हैं। जिनमें से मूलादि पांचों में देव उत्पन्न नहीं होते हैं और प्रवाल से लेकर बीज पर्यन्त के पांच भेदों में देव उत्पन्न हो सकते हैं, इत्यादि वर्णन है। इस मूल पाठ से भी केले में बीज होते हैं, वे बीज के जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं। इत्यादि की स्पष्ट रूप से सिद्धि होती है। अत: आगमों पर श्रद्धा रखने वाले मुमुक्षु साधकों को केले में बीज मानने चाहिये और बीजों के कारण केलों को सचित्त मानना चाहिए। अतः साधु समाज को तो इसका वर्जन रखना ही चाहिये। भगवती सूत्र के इस पाठ से केले में बीज होना स्पष्ट प्रमाणित हो रहा है। केले के मध्य में जो काली रेखा दिखाई देती है वह छोटे छोटे बीजों की पंक्ति है। यह प्रत्यक्ष से भी सिद्ध है। केला पूरा हो या खण्ड रूप हो, टुकड़ों पर शक्कर डाल दी गई हो तो भी बीजों के होने से वह सचित्त है एवं साधु साध्वियों के लिए अकल्पनीय है। यही बात इस शतक के अंतिम वर्ग में वर्णित द्राक्षा के विषय में भी लागू होती है।
से किं तं हरिया ? हरिया अणेग विहा पण्णत्ता। तंजहा - अज्जोरुह-वोडाणे हरितग तह तंदुलेजग तणे य। वत्थुल-पारग-मज्जार पाइ बिल्ली य पालक्का॥१॥ दगपिप्पली य दव्वी सोत्थिय साए तहेव मंडुक्की। मूलग-सरिसव अंबिल-साए य जियंतए चेव॥२॥ तुलसी कण्ह उराले फणिज्जए अज्जए य भूयणए। चोरग-दमणग-मरुयग सयपुष्फिंदीवरे य तहा॥३॥ जे यावण्णे तहप्पगारा।से तं हरिया॥४१॥ भावार्थ - प्रश्न - हरित वनस्पतियाँ कितने प्रकार की कही गयी हैं ?
उत्तर - हरित वनस्पतियाँ (हरी साग भाजियाँ) अनेक प्रकार की कही गयी हैं, वे इस प्रकार हैंअद्यावरोह, व्युदान, हरितक, तान्दुलेयक, तृण, वस्तुल (बथुआ) पोरक, मार्जार, पाती, बिल्वी और पाल्यक (पालक)। दकपिप्पली, दर्वी, स्वस्तिक शाक तथा माण्डुकी। मूलक, सरसव (सर्षप), अम्ल शाक और जीवन्तक। तुलसी, कृष्ण, उदार, फायनेयक, आर्यक और भुजनक, चोरक, दमनक, मरुचक (मरवो), शतपुष्प और इंदिवर। इसके अलावा अन्य जो इसी प्रकार की वनस्पतियाँ है उन्हें हरित . समझना चाहिए। इस प्रकार हरित वनस्पतियाँ कही गयी हैं।
से किं तं ओसहीओ? ओसहीओ अणेग विहाओ पण्णत्ताओ। तंजहा - सालीवीही-गोहुम-जवजवा-कल-मसूर-तिल-मुग्गा।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org