________________
६६
प्रज्ञापना सूत्र
सब में बीज होता है। अतः बीज युक्त होने से दाख सचित्त है। इसमें बीज बहुत छोटा होता है इसलिए सहज रूप में दिखाई नहीं देता। लोग कहते हैं कि आजकल सीडलेस (बीज रहित) अङ्गुर आते हैं। परन्तु यह मान्यता गलत है कि उनमें बीज नहीं होते वास्तविक ध्यान पूर्वक देखने पर बीज दिखाई देते हैं। क्योंकि बीज बिना कोई फल होता ही नहीं है। किसी कोष में दाख (किसमिस) को " 'अबीजा" लिख दिया गया है परन्तु यहाँ पर अकार का अर्थ निषेध नहीं है किन्तु अल्प अर्थ है। इसलिए अबीजा का अर्थ "अल्पबीजा" समझना चाहिए। इसके अन्दर बीज बहुत छोटे होते हैं इस कारण सामान्य रूप से देखने वालों को दिखाई नहीं देते हैं । किन्तु वह दाख उबली हुई हो अथवा खीर आदि बनायी हुई हो, उसमें दाख डाली हुई हो तो वह फूल जाती है। तब उसमें बीज स्पष्ट दिखाई देता है।
से किं तं पव्वगा ? पव्वगा अणेगविहा पण्णत्ता । तंजहा -
इक्खू य इक्खुवाडी वीरण तह एक्कडे भमासे य । सुंठे सरे य वेत्ते तिमिरे सयपोरग ले य ॥ १ ॥ वंसे वेलू कणए कंकावंसे य चाववंसे य । उदए कुडए विमए कंडावेलू य कल्लाणे ॥ २ ॥
जे यावणे तहप्पगारा । से तं पव्वगा ॥ ३८ ॥
Jain Education International
*******
भावार्थ - प्रश्न - पर्वक (पर्व वाली) वनस्पतियाँ कितने प्रकार की कही गयी है ?
उत्तर - पर्वक (गांठ वाली) वनस्पतियाँ अनेक प्रकार की कही गई है। वे इस प्रकार हैं
१. इक्षु, इक्षुवाटिका, वीरण (वालो) एक्कड (इत्कट) भमास, सूंठ, शर, वेत्र, तिमिर, शत पोरक और नल। वंश (बांस), वेणु (बांस की जाति), कनक, कर्कावंश और चापवंश (धनुष बनाने योग्य बांस), उदक कुडग (कुटज) विभक्त, कंडावेणु और कल्याण । इसी प्रकार की अन्य जो वनस्पति है उन्हें पर्वक समझना चाहिए। उनके पर्व (गांठ) में बीज होता है। इस प्रकार पर्वक वनस्पति कही गयी हैं। से किं तं तणा ? तणा अणेग विहा पण्णत्ता। तंजहा - सेडिय-मंत्तिय-होंत्तिय-दब्भकुसे पव्वए य पोडड्ला ।
अज्जुण असाढए रोहियंसे सुय-वेय-खीर - तुसे (भुसे ) ॥ १ ॥ एरंडे कुरुविंदे कक्खड (करकर) सुंद्वे तहा विभंगू य । महुर- तण - लुणय (थुरय) सिप्पिय बोद्धव्वे सुंकलि तणा य ॥ २ ॥ जे यावण्णे तहप्पगारा । से तं तणा ॥ ३९ ॥
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org