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________________ से किं तं वल्लीओ ? वल्लीओ अणेग विहाओ पण्णत्ताओ। तंजहा पूसफली कालिंगी तुंबी तउसी य एलवालुंकी । . घोसाडई पडोला पंचंगुलिया य णाली य ॥ १ ॥ कंगूया य कहुइया कक्कोडइ कारियल्लई सुभगा । कुवधा (या) य वागली पाववल्ली तह देवदाली य ॥२॥ अप्फोया अइमुत्तगणागलया कण्ह-सूरवल्ली य । ** संघट्ट- सुमनसा विय जासुवण- कुविंद वल्ली य॥३॥ मुद्दिय अंबावल्ली ** छीरविराली जयंती ** गोवाली' पाणी - मासावल्ली गुंजावल्ली य वच्छाणी ॥ ४॥ ससबिन्दु गोत्तफुसिया गिरिकण्णई मालुया य अंजणई । दहफोल्लई कागणी मोगली य तह अक्कबोंदी य ॥ ५ ॥ यावणे तहप्पगारा। से तं वल्लीओ ॥ ३७॥ प्रथम प्रज्ञापना पद - वनस्पतिकायिक जीव प्रज्ञापना Jain Education International भावार्थ - प्रश्न वल्लियाँ कितनी प्रकार की कही गयी है ? उत्तर - वल्लियाँ अनेक प्रकार की कही गई हैं। वे इस प्रकार हैं- पूसफली, कालिंगी (जंगली तरबूज की बेल), तुम्बी, त्रपुषी (ककडी), एलवालुंकी (एक प्रकार की ककडी) घोषातकी (तोरई), पंडोला, पंचागुलिका और नीली (नालीका)। कंडुइया, कट्ठूइया, कंकोडी, करेला (लोक प्रसिद्ध), सुभगा (मोगरा की एक जाति) कुयवाय, वागुलीया, पापवल्ली, देवदाली ( कुकडबेल) । अफ्फ़ोया (आस्फोटा-अनन्तमूल) अतिमुक्त, नागलता (नागबेल) कृष्णा (जटामांसी) सूर्यवल्ली, संघट्टा, सुमनसा, जासुवन और कुविन्दवल्ली। मुद्दिया (मृद्विका दाख की बेल), अंबावल्ली (आम्रवल्ली), क्षीरविदारिका, जयंती गोपाली, पाणी, मासावल्ली, गुंजावल्ली (चणीठी चिरमी की वेल) वच्छाणी ( वत्सादनी गजपीपर)। शशबिन्दु, गोत्रस्पर्शिका, गिरिकर्णिका, मालुका और अंजनकी दहस्फोटकी ( दधिपुष्पिका) काकणी, मोगली और अर्कबोंदि । इसी प्रकार की अन्य जितनी भी वनस्पतियाँ है उन्हें वल्लियाँ समझना चाहिये। इस प्रकार वल्लियाँ कही गयी है । - - 1 विवेचन इनमें से कितनेक प्रसिद्ध हैं और कितनेक अप्रसिद्ध हैं। किसी देश विशेष में प्रसिद्ध भी हो सकती हैं। यहाँ वल्लियों के प्रकरण में "मुद्दिया" शब्द आया है। जिसका अर्थ है मृद्विका अर्थात् दाख (किशमिश)। इस आगम पाठ से यह स्पष्ट होता है कि दाख छोटी हो चाहे बड़ी हो उन ** पाठान्तर - देवदारु, अप्पाभल्ली, जियंति, गोवल्ली । ६५ **** For Personal & Private Use Only www.jalnelibrary.org
SR No.004093
Book TitlePragnapana Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages414
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size9 MB
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