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प्रज्ञापना सूत्र
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इत्थीपुरिस सिद्धा य, तहेव य नपुंसगा। सलिंगे अन्नलिंगे य, गिहिलिंगे तहेव य॥५०॥ उक्कोसोगाहणाए य, जहण्णमज्झिमाइ य। उड़े अहे य तिरियं च, समुद्दम्मि जलम्मि य॥५१॥
अर्थ - स्त्रीलिंग सिद्ध, पुरुषलिंग सिद्ध, नपुंसक लिंग सिद्ध, स्वलिंग सिद्ध, अन्यलिंग सिद्ध, गृहस्थलिंग सिद्ध, जघन्य अवगाहना, मध्यम अवगाहना, उत्कृष्ट अवगाहना वाले सिद्ध, ऊर्ध्वलोक, अधोलोक और तिर्यक् लोक में होने वाले सिद्ध तथा समुद्र एवं जलाशय में होने वाले सिद्ध। ..
इस प्रकार ये चौदह प्रकार के सिद्ध हुए। प्रश्न - भेद और प्रकार में क्या फर्क है?
उत्तर - गिनती (संख्या) करके बताना भेद हैं। तरीके को प्रकार कहते हैं। अर्थात् इतनी तरह से सिद्ध हो सकते हैं यह बताना प्रकार (तरीका) है।
से किं तं परंपरसिद्ध असंसार समावण्ण जीव पण्णवणा? परंपरसिद्ध असंसार समावण्ण जीव पण्णवणा अणेगविहा पण्णत्ता, तंजहा - अपढमसमयसिद्धा, दुसमयसिद्धा, तिसमयसिद्धा, चउसमयसिद्धा जाव संखिजसमयसिद्धा असंखिजसमयसिद्धा, अणंतसमयसिद्धा। सेत्तं परंपरसिद्ध असंसार समावण्ण जीव पण्णवणा। से त्तं असंसार समावण्ण जीव पण्णवणा॥१०॥
भावार्थ - प्रश्न - परम्परसिद्ध-असंसार-समापन्न-जीव प्रज्ञापना कितने प्रकार की कही गई हैं ? .
उत्तर - परम्परसिद्ध असंसार समापन्न जीव प्रज्ञापना अनेक प्रकार की कही गई हैं। वह इस प्रकार है - अप्रथमसमय सिद्ध, द्विसमयसिद्ध, त्रिसमयसिद्ध, चतुःसमयसिद्ध यावत् संख्यात समयसिद्ध, असंख्यात समयसिद्ध और अनंतसमय सिद्ध। इस प्रकार परंपरसिद्ध-असंसारसमापन्न जीव प्रज्ञापना कही गई। इस प्रकार असंसार समापन्न जीवों की प्रज्ञापना पूर्ण हुई।
विवेचन - परम्पर सिद्ध अनेक प्रकार के कहे गये हैं अतः परम्पर सिद्ध असंसार समापन्न जीव प्रज्ञापना भी अनेक प्रकार की कही गई है। जिन्हें सिद्ध हुए प्रथम समय न हुआ है अर्थात् जिन्हें सिद्ध हुए एक से अधिक समय हो चुके हैं वे अप्रथमसमयसिद्ध कहलाते हैं। जिन्हें सिद्ध हुए तीन आदि समय हुए हैं वे द्वितीय समय सिद्ध कहलाते हैं यानी जिन्हें मोक्ष गये हुए दो समय हुए हैं वे अप्रथम समयसिद्ध और तीन समय हुए हैं वे द्वितीय समयसिद्ध, चार समय हुए हैं वे तृतीय समय सिद्ध, इस प्रकार जानना चाहिए।
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