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________________ *********** Jain Education International - प्रथम प्रज्ञापना पद संसार समापन्न जीव प्रज्ञापना संसार समापन जीव प्रज्ञापना से किं तं संसार समावण्ण जीव पण्णवणा ? संसार समावण्ण जीव पण्णवणा पंचविहा पण्णत्ता तंजहा - १. एगिंदिय संसार समावण्ण जीव पण्णवणा २. बेइंदिय संसार समावण्ण जीव पण्णवणा ३. तेइंदिय संसार समावण्ण जीव पण्णवणा ४. चउरिदिय संसार समावण्ण जीव पण्णवणा ५. पंचिंदिय संसार समावण्ण जीव पण्णवणा ॥ ११ ॥ भावार्थ - प्रश्न संसार समापन्न जीव प्रज्ञापना कितने प्रकार की कही गई हैं ? उत्तर - संसार समापन्न जीव प्रज्ञापना पांच प्रकार की कही गई है - १. एकेन्द्रिय संसार समापन्न जीव प्रज्ञापना २. बेइन्द्रिय संसार समापन्न जीव प्रज्ञापना ३. तेइन्द्रिय संसार समापन जीव प्रज्ञापना ४. चउरिन्द्रिय संसार समापन्न जीव प्रज्ञापना और ५. पंचेन्द्रिय संसार समापन्न जीव प्रज्ञापना । विवेचन जिन जीवों के सिर्फ एक स्पर्शनेन्द्रिय है वे एकेन्द्रिय कहलाते हैं। पृथ्वीकाय, अप्काय, तेउकाय, वायुकाय और वनस्पतिकाय के भेद से एकेन्द्रिय जीव पांच प्रकार के कहे गए हैं। ऐसे एकेन्द्रिय जीवों की प्रज्ञापना (प्ररूपणा) करना एकेन्द्रिय संसार समापन्न जीव प्रज्ञापना कहलाती है । इसी प्रकार बेइन्द्रिय संसार समापन्न जीव प्रज्ञापना आदि के विषय में समझना चाहिये । जिन जीवों के स्पर्शनेन्द्रिय, रसनेन्द्रिय ये दो इन्द्रियाँ वे बेइन्द्रिय कहलाते हैं जैसे शंख, सीप आदि । जिन जीवों के स्पर्शनेन्द्रिय, रसनेन्द्रिय, घ्राणेन्द्रिय ये तीन इन्द्रियाँ हैं वे तेइन्द्रिय कहलाते हैं जैसे जूं, लीख, माकड़ (खटमल) आदि। जिन जीवों के स्पर्शनेन्द्रिय, रसनेन्द्रिय, घ्राणेन्द्रिय, चक्षुरिन्द्रिय ये चार इन्द्रियाँ हैं वे चउरिन्द्रिय कहलाते हैं जैसे- डांस, मच्छर, मक्खी आदि । जिन जीवों के स्पर्शनेन्द्रिय, रसनेन्द्रिय, घ्राणेन्द्रिय, चक्षुरिन्द्रिय और श्रोत्रेन्द्रिय रूप पांच इन्द्रियाँ हैं वे पंचेन्द्रिय कहलाते हैं। जैसे मनुष्य, मछली, मगर आदि । एकेन्द्रिय संसार समापन जीव प्रज्ञापना से किं तं एगिंदिय संसार समावण्ण जीव पण्णवणा? एगिंदिय संसार समावण्ण जीव पण्णवणा पंचविहा पण्णत्ता । तंजहा १ पुढवी काइया, २ आउ काइया, ३ तेउ काइया, ४ वाउ काइया, ५ वणस्सइ काइया ॥ १२ ॥ भावार्थ - - प्रश्न- एकेन्द्रिय संसार समापन्न जीव प्रज्ञापना कितने प्रकार की कही गई हैं? उत्तर - एकेन्द्रिय संसार समापन्न जीव प्रज्ञापना पांच प्रकार की कही गई है। वह इस प्रकार है. १. पृथ्वीकायिक २. अप्कायिक ३. तेजस्कायिक ४. वायुकायिक और ५. वनस्पतिकायिक । - - For Personal & Private Use Only ४५ . www.jainelibrary.org
SR No.004093
Book TitlePragnapana Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages414
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size9 MB
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