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________________ ४२ प्रज्ञापना सूत्र ***************** ************ *-*-*-*-*- *-* प्रश्न - सिद्ध शब्द की व्युत्पत्ति क्या है ? उत्तर - "षिधु गत्याम्" षिधु शास्त्रे माङ्गल्ये च। संस्कृत में ये दो धातु हैं। इन दो धातुओं से सिद्ध शब्द बनता है यथा - असेधीत् अथवा असैत्सीत यः सर्व कार्याणि स: सिद्धः अथवा सिद्ध्यतिस्म कृतकृत्यो भवेत् सेधयति स्म वा-अगच्छत् अपुनरावृत्या लोकाग्रम इति सिद्धः । सिध्यति स्म सिद्धो यो येन गुणेण निष्पन्नः परिनिष्ठितः, न पुनः साधनीय इत्यर्थः।" अर्थ - जिनके सब काम पूर्ण हो चुके हैं। फिर कोई काम करना बाकी नहीं रहा है। उनको कृतकृत्य कहते हैं। सिद्ध भगवान् कृतकृत्य हो चुके हैं क्योंकि उनको अब कोई काम करना बाकी नहीं रहा है तथा जो ऐसे स्थान पर स्थित हैं, जहाँ जाने पर जीव वापिस संसार में नहीं लौटता है ऐसा स्थान लोक के अग्रभाग पर स्थित है, वह सिद्ध स्थान है। उसे ईषत्प्राग्भारा पृथ्वी अथवा सिद्ध शिला भी कहते हैं। २. अतीर्थ सिद्ध - तीर्थ की स्थापना होने से पहले अथवा बीच में तीर्थ का विच्छेद होने पर जो सिद्ध होते हैं वे अतीर्थसिद्ध कहलाते हैं। जैसे - मरुदेवी माता आदि। मरुदेवी माता तीर्थ की स्थापना होने से पहले ही मोक्ष पधार गई थी। भगवान् सुविधिनाथ से लेकर भगवान् शान्तिनाथ तक आठ तीर्थंकरों के बीच में सात अन्तरों में तीर्थ का विच्छेद हो गया था। इस विच्छेद काल में मो वाले अतीर्थसिद्ध कहलाते हैं। ३. तीर्थंकर सिद्ध - तीर्थंकर पद को प्राप्त करके मोक्ष जाने वाले तीर्थंकर सिद्ध कहलाते हैं। जैसे - भगवान् ऋषभदेव आदि चौबीस तीर्थङ्कर। ४. अतीर्थंकर सिद्ध - सामान्य केवली हो कर मोक्ष जाने वाले जीव अतीर्थंकर सिद्ध कहलाते हैं। जैसे - गौतम स्वामी, जम्बूस्वामी आदि। ५. स्वयंबुद्ध सिद्ध - दूसरे के उपदेश के बिना स्वयमेव बोध प्राप्त कर मोक्ष जाने वाले स्वयंबुद्ध सिद्ध कहलाते हैं। जैसे - कपिल केवली आदि। ६. प्रत्येक बुद्ध सिद्ध - जो किसी के उपदेश के बिना ही किसी एक पदार्थ को देख कर वैराग्य को प्राप्त होते हैं और दीक्षा धारण करके मोक्ष जाते हैं, वे प्रत्येक बुद्ध सिद्ध कहलाते हैं। जैसे - करकण्डू, नमिराज ऋषि आदि। ७. बुद्धबोधित सिद्ध - आचार्य आदि के उपदेश से बोध प्राप्त कर मोक्ष जाने वाले बुद्धबोधित सिद्ध कहलाते हैं। जैसे - जम्बूस्वामी आदि। .तीर्थ विच्छेद होने के बाद असंयतियों की पूजा होना एक अच्छेरा (आश्चर्य) है। इस अवसर्पिणी काल में दस अच्छेरे हुए हैं। उनमें यह (तीर्थ विच्छेद) एक अच्छेरा (आश्चर्य) है। दस आश्चर्यों का वर्णन ठाणाङ्ग सूत्र के दसवें ठाणे में आया है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004093
Book TitlePragnapana Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages414
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size9 MB
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