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३२
प्रज्ञापना सूत्र
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वण्ण परिणता वि।गंधओ सुब्भि गंध परिणता वि, दुब्भि गंध परिणता वि। फासओ कक्खड फास परिणता वि, मउय फास परिणता वि, गरुय फास परिणता वि, लहुय फास परिणता वि, सीय फास परिणता वि, उसिण फास परिणता वि, णिद्ध फास परिणता वि, लुक्ख फास परिणता वि।संठाणओ परिमंडल संठाण परिणता वि, वट्ट संठाण परिणता वि, तंस संठाण परिणता वि, चउरंस संठाण परिणता वि, आयय संठाण परिणता वि २०। ..
भावार्थ - जो रस से अम्ल रस परिणत होते हैं वे वर्ण से कृष्ण वर्ण परिणत भी होते हैं, नील वर्ण परिणत भी होते हैं, रक्त वर्ण परिणत भी होते हैं, पीत वर्ण परिणत भी होते हैं और शुक्ल वर्ण परिणत भी होते हैं। गंध से वे सुगंध परिणत भी होते हैं और दुर्गन्ध परिणत भी होते हैं। स्पर्श से कर्कश, मृदु, गुरु, लघु, शीत, उष्ण, स्निग्ध स्पर्श और रूक्ष स्पर्श परिणत भी होते हैं। संस्थान से परिमंडल, वृत्त, त्र्यस्र, चतुरस्र संस्थान परिणत भी होते हैं और आयत संस्थान परिणत भी होते हैं.२० ।
जे रसओ महुर रस परिणता, ते वण्णओ काल वण्ण परिणता वि, णील वण्ण परिणता वि, लोहिय वण्ण परिणता वि, हालिद्द वण्ण परिणता वि, सुक्किल्ल वण्ण परिणता वि। गंधओ सुब्भिगंध परिणता वि, दुब्भि गंध परिणता वि। फासओ कक्खड फास परिणता वि, मउय फास परिणता वि, गरुय फास परिणता वि, लहुय फास परिणता वि, सीय फास परिणता वि, उसिण फास परिणता वि, णिद्ध फास परिणता वि, लुक्ख फास परिणता वि।संठाणओ परिमंडल संठाण परिणता वि, वट्ट संठाण परिणता वि, तंस संठाण परिणता वि, चउरंस संठाण परिणता वि, आयय संठाण परिणता वि २०।१००।
भावार्थ - जो रस से मधुर रस परिणत होते हैं वे वर्ण से कृष्ण वर्ण परिणत भी होते हैं, नील वर्ण परिणत भी होते हैं, रक्त वर्ण परिणत भी होते हैं, पीत वर्ण परिणत भी होते हैं और शुक्ल वर्ण परिणत भी होते हैं। गंध से वे सुगंध परिणत भी होते हैं और दुर्गन्ध परिणत भी होते हैं। स्पर्श से कर्कश, मृदु, गुरु, लघु, शीत, उष्ण, स्निग्ध स्पर्श और रूक्ष स्पर्श परिणत भी होते हैं। संस्थान से परिमंडल, वृत्त, त्र्यस्र, चतुरस्र संस्थान परिणत भी होते हैं और आयत संस्थान परिणत भी होते हैं। .
विवेचन - पांच रसों में से प्रत्येक रस के रूप में परिणत पुद्गल यदि पांच वर्ण, दो गन्ध, आठ स्पर्श और पांच संस्थानों के रूप में परिणत हों तो उन पांचों के २०+२०+२०+२०+२०-१०० भंग हो जाते हैं।
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