________________
प्रथम प्रजापना पद - रूपी अजीव प्रजापना
३१
***********************************
*
*
*
*************
परिणता वि, लोहिय वण्ण परिणता वि हालिह वण्ण परिणता वि सुक्किल्ल वण्ण परिणता वि। गंधओ सुब्भि गंध परिणता वि, दुब्भि गंध परिणता वि। फासओ कक्खड फास परिणता वि, मउय फास परिणता वि, गरुय फास परिणता वि, लहुय फास परिणया वि, सीय फास परिणता वि, उसिण फास परिणता वि, णिद्ध फास परिणता वि, लुक्ख फास परिणता वि। संठाणओ परिमंडल संठाण परिणता वि, वट्ट संठाण परिणता वि, तंस संठाण परिणता वि, चउ रंस संठाण परिणता वि, आयय संठाण परिणता वि २०।।
भावार्थ - जो रस से कटु रस परिणत होते हैं वे वर्ण से कृष्ण वर्ण परिणत भी होते हैं, नील वर्ण परिणत भी होते हैं, रक्त वर्ण परिणत भी होते हैं, पीत वर्ण परिणत भी होते हैं और शुक्ल वर्ण परिणत भी होते हैं। गंध से वे सुगंध परिणत भी होते हैं और दुर्गन्ध परिणत भी होते हैं। स्पर्श से कर्कश, मृदु, गुरु, लघु, शीत, उष्ण, स्निग्ध और रूक्ष स्पर्श परिणत भी होते हैं। संस्थान से परिमंडल, वृत्त, त्र्यस्त्र, चतुरस्र संस्थान परिणत भी होते हैं और आयत संस्थान परिणत भी होते हैं २०।
जे रसओ कसाय रस परिणता, ते वण्णओ काल वण्ण परिणता वि, णील वण्ण परिणता वि, लोहिय वण्ण परिणता वि, हालिद्द वण्ण परिणता वि, सुक्किल्ल वण्ण परिणता वि। गंधओ सुब्भि गंध परिणता वि, दुब्भि गंध परिणता वि। फासओ कक्खड फास परिणता वि, मउय फास परिणता वि, गरुय फास परिणता वि, लहुय फास परिणता वि, सीय फास परिणता वि, उसिण फास परिणता वि, णिद्ध फास परिणता वि, लुक्ख फास परिणता वि। संठाणओ परिमंडल संठाण परिणता वि, वट्ट संठाण परिणता वि, तंस संठाण परिणता वि, चउरंस संठाण परिणता वि, आयय संठाण परिणता वि २०।
भावार्थ - जो रस से कषाय रस परिणत होते हैं वे वर्ण सेकृष्ण वर्ण परिणत भी होते हैं, नील वर्ण परिणत भी होते हैं, रक्त वर्ण परिणत भी होते हैं, पीत वर्ण परिणत भी होते हैं और शुक्ल वर्ण परिणत भी होते हैं। गंध से वे सुगंध परिणत भी होते हैं और दुर्गन्ध परिणत भी होते हैं। स्पर्श से कर्कश, मृदु, गुरु, लघु, शीत, उष्ण, स्निग्ध और रूक्ष स्पर्श परिणत भी होते हैं। संस्थान से परिमंडल, वृत्त, त्र्यस, चतुरस्र संस्थान परिणत भी होते हैं और आयत संस्थान परिणत भी होते हैं २०।
जे रसओ अंबिल रस परिणता, ते वण्णओ काल वण्ण परिणता वि, णील वण्ण परिणता वि, लोहिय वण्ण परिणता वि, हालिद्द वण्ण परिणता वि, सुक्किल्ल
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org