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wittentitra......... प्रज्ञापना सूत्र
प्रस्तुत सूत्र में आहारक, अनाहारक जीवों का अल्पबहुत्व कहा गया है। सबसे थोड़े अनाहारक जीव हैं क्योंकि विग्रह गति को प्राप्त हुए जीव आदि ही अनाहारक होते हैं। कहा भी है -
विग्गहगइमावण्णा केवलिणो समुहया अजोगी य। सिद्धा य अणाहारा, सेसा आहारगा जीवा॥
- विग्रह गति को प्राप्त हुए जीव, समुद्घात प्राप्त केवली, अयोगी केवली और सिद्ध भगवान् अनाहारक होते हैं शेष सभी जीव आहारक होते हैं। अतः आहारक जीव असंख्यात गुणा हैं।
शंका - आहारक जीवों में वनस्पतिकायिक जीव भी हैं और वे सिद्धों से अनन्त गुणा हैं तो फिर अनाहारक से आहारक अनंत गुणा क्यों नहीं कहे गये हैं ?
समाधान - सभी सूक्ष्म निगोद मिल कर भी असंख्यात ही हैं और उनमें अन्तर्मुहूर्त समय प्रमाण सूक्ष्म निगोद हमेशा विग्रह गति में होते हैं अत: अनाहारक भी बहुत हैं और वे सर्व राशि के असंख्यातवें भाग जितने हैं, अत: उनकी अपेक्षा आहारक जीव असंख्यात गुणा ही हैं, अनन्त गुणा नहीं। .
॥चौदहवां आहार द्वार समाप्त ॥
१५. पन्द्रहवां भाषक द्वार एएसि णं भंते! जीवाणं भासगाणं अभासगाणं च कयरे कयरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा?
गोयमा! सव्वत्थोवा जीवा भासगा, अभासगा अणंत गुणा॥१५ दारं॥१८४॥
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! इन भाषक और अभाषक जीवों में कौन किनसे अल्प, बहुत, तुल्य या विशेषाधिक हैं?
उत्तर - हे गौतम! सबसे थोड़े भाषक जीव हैं उनसे अभाषक जीव अनन्त गुणा हैं। विवेचन - प्रश्न - भाषक किसे कहते हैं? उत्तर - "भाषते इति भाषक: भाषा लब्धि सम्पन्न भाषकः"
अर्थ - जो बोलता है उसे भाषक कहते हैं अथवा जो जीव भाषा लब्धि संपन्न हैं वे भाषक कहलाते हैं। . प्रश्न - अभाषक किसे कहते हैं ?
उत्तर - जो जीव भाषा लब्धि से रहित हैं वे अभाषक कहलाते हैं।
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