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तीसरा बहुवक्तव्यता पद - आहार द्वार
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उत्तर - "उपयोजनम् उपयोगः। उपयुज्यते वस्तुपरिच्छेदं प्रति व्यापार्यते जीवः अनेन इति उपयोगः।" ____ अर्थ - संस्कृत में "युजिर् योगे" धातु है। जिसका अर्थ है जोड़ना इससे योग शब्द बनता है। "उप्" उपसर्ग लगाने से उपयोग शब्द बनता है। प्राकृत में "उवओग" शब्द बन जाता है। जिसका अर्थ है वस्तु तत्त्व को जानने के लिए जीव जिसके द्वारा प्रेरित किया जाता है उसको उपयोग कहते हैं। उपयोग जीव का स्वभाव है जैसा कि-उत्तराध्ययन सूत्र के अट्ठाईसवें अध्ययन में कहा है "जीवो उवओग लक्खणो।" यही बात तत्त्वार्थ सूत्र में कही गयी है 'उपयोगः लक्षणं जीवस्य' जिसके दो भेद हैं - साकार उपयोग और अनाकार उपयोग। ज्ञानोपयोग को साकार उपयोग कहते हैं और दर्शनोपयोग को अनाकार उपयोग कहते हैं। साकार उपयोग के आठ भेद हैं - पांच ज्ञान और तीन अज्ञान और अनाकार उपयोग के चार भेद हैं - चक्षु दर्शन, अचक्षु दर्शन, अवधि दर्शन और केवल दर्शन।
___ संयत द्वार समाप्त हुआ अब उपयोग द्वार कहते हैं - अनाकार-दर्शन उपयोग काल सबसे थोड़ा है और उससे साकार उपयोग-ज्ञानोपयोग काल संख्यात गुणा है अतः अनाकारोपयोग वाले सबसे थोड़े हैं क्योंकि प्रश्न के समय वे थोड़े ही होते हैं उनसे साकारोपयोग वाले संख्यात गुणा हैं क्योंकि साकारोपयोग का काल लंबा होता है अतः प्रश्न समय वे बहुत होते हैं।
|| तेरहवां उपयोग द्वार समाप्त॥
१४. चौदहवां आहार द्वार एएसि णं भंते! जीवाणं आहारगाणं अणाहारगाणं च कयरे कयरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा?
गोयमा! सव्वत्थोवा जीवा अणाहारगा, आहारगा असंखिज गुणा॥ १४ दारं॥१८३॥
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! इन आहारक और अनाहारक जीवों में कौन किनसे अल्प, बहुत, तुल्य या विशेषाधिक हैं?
उत्तर - हे गौतम! सबसे थोड़े अनाहारक जीव हैं, उनसे आहारक जीव असंख्यात गुणा हैं। विवेचन - प्रश्न - हे भगवन्! आहार किसे कहते हैं ? उत्तर - "आहरणम् आहारः। अथवा आह्रियते परिगृह्यते जीव इति आहारः।"
अर्थ - जीवों के द्वारा जो पुद्गल ग्रहण किये जाते हैं उसको आहार कहते हैं। आहार के तीन भेद हैं - ओज आहार, रोम आहार और कवलाहार (प्रक्षेपाहार या ग्रास आहार)।
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