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________________ २२८ प्रज्ञापना सूत्र ************************************************************************************ नक्षत्र का विमान एक कोस और तारा का विमान आधा कोस का लम्बा चौड़ा है। सब की परिधि अपनी लम्बाई चौड़ाई से तिगुनी से अधिक है। चन्द्र विमान को १६००० और सूर्य विमान को १६००० देव, ग्रह विमान को ८००० देव, नक्षत्र विमान को ४००० देव और तारा विमान को २००० देव चारों दिशाओं में सिंह, हाथी, घोड़ा और बैल का रूप धारण कर उठाते हैं। यह उनका जीताचार है एवं उनके रुचि का विषय है। टीकाकार लिखते हैं कि इन का विस्तृत वर्णन चन्द्र प्रज्ञप्ति और सूर्य प्रज्ञप्ति की टीका में शंका समाधान सहित दिया गया है। अतः विशेष जिज्ञासुओं को वहाँ देखना चाहिए। चन्द्र, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र और तारा ये पांचों ज्योतिषी देव के भेद हैं। इन पांचों के दो भेद हैं - चर (चलने वाले) और अचर (नहीं चलने वाले अर्थात् स्थिर)। जम्बूद्वीप, धातकीखण्ड, अर्द्धपुष्करवर द्वीप ये अढ़ाई द्वीप तथा लवण समुद्र और कालोदधि समुद्र इस प्रकार अढाई द्वीप और दो समुद्र यह मनुष्य लोक कहलाता है। इसमें जो चन्द्र आदि ज्योतिषी देव हैं वे सब चर हैं। उनके चर होने से ही समय, आवलिका, मुहूर्त, दिन-रात आदि का ज्ञान होता है इसीलिए इनको (अढाई द्वीप और दो समुद्र) समय क्षेत्र भी कहते हैं। इसके बाद असंख्यात द्वीप और असंख्यात समुद्रों में जो ज्योतिषी देव हैं वे सब स्थिर हैं। इसलिए वहाँ दिन-रात, घण्टा, मिनिट, घडी, पल आदि का व्यवहार नहीं होता है। जम्बूद्वीप में दो चन्द्र और दो सूर्य हैं। लवण समुद्र में चार चन्द्र और चार सूर्य हैं। धातकी खण्ड द्वीप में बारह चन्द्र और बारह सूर्य हैं। कालोदधि समुद्र में बयालीस चन्द्र और बयालीस सूर्य हैं। अर्द्धपुष्करवर द्वीप में बहत्तर चन्द्र और बहत्तर सूर्य हैं। इस प्रकार अढ़ाई द्वीप में एक सौ बत्तीस चन्द्र और एक सौ बत्तीस सूर्य हैं। ये सब चर हैं। एक चन्द्र का परिवार इस प्रकार है - ८८ (इठयासी) महाग्रह, अठाईस नक्षत्र और ६६९७५ कोड़ाकोडी तारा गण हैं। इतना ही परिवार एक सूर्य का भी है अर्थात् एक एक चन्द्रमा सूर्य का सम्मिलित रूप से इतना परिवार होता है। असंख्यात द्वीप और असंख्यात समुद्रों में असंख्यात चन्द्र और असंख्यात सूर्य हैं। वे सब ज्योतिषी देवों के इन्द्र हैं परन्तु ज्योतिषियों के एक चन्द्र और एक सूर्य ऐसे दो इन्द्र ही चोसष्ट इन्द्रों में गिने गये हैं इसलिए इन्हें ज्योतिषी देवों की जाति की अपेक्षा दो इन्द्र ही समझना चाहिए। चौसठ इन्द्रों में ज्योतिषी देवों के दो इन्द्र गिने गये हैं वे सभी द्वीप समुद्रों के चन्द्र व सूर्य की अपेक्षा समझना चाहिये। चन्द्र और सूर्य की द्वीप समुद्रों में संख्या निकालने का तरीका (पद्धति) यह है कि - जम्बूद्वीप में दो, लवण समुद्र के चार और धातकीखण्ड द्वीप के बारह। इसके आगे इस संख्या को तिगुना करके पिछली संख्या को जोड़ देना चाहिए जैसे कि धातकी खण्ड के बारह चन्द्र हैं। इनको तीन से गुणा करने पर (१२४३) छत्तीस होते हैं। इनमें पिछले छह (दो जम्बूद्वीप के तथा चार लवणसमुद्र के) जोड़ देने से बयालीस की संख्या होती है। यह कालोदधि समुद्र के चन्द्रों की संख्या हुई। इसके आगे का Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004093
Book TitlePragnapana Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages414
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size9 MB
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