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________________ दूसरा स्थान पद - ज्योतिषी देवों के स्थान २२७ **************************************************************** प्रश्न - ज्योतिषी देवों के विमानों में परस्पर कितना अन्तर है? उत्तर - अढाई द्वीप के बाहर एक चन्द्रमा के विमान का दूसरे चन्द्रमा के विमान से एक लाख योजन का अन्तर है। इसी तरह एक सूर्य के विमान से दूसरे सूर्य के विमान का अन्तर एक लाख योजन का है। चन्द्रमा का और सूर्य के बीच का अन्तर पचास हजार योजन है। अढाई द्वीप के अन्दर ज्योतिषी देवों ताराओं के विमान का अन्तर दो प्रकार का है - व्याघात आसरी और निर्व्याघात आसरी। व्याघात आसरी जघन्य अन्तर दो सौ छासठ (२६६) योजन का है वह इस प्रकार है कि निषध पर्वत और नीलवन्त पर्वत चार-चार सौ योजन के ऊंचे हैं उनके ऊपर पांच पांच सौ योजन के कूट हैं। वे अढाई सौ अढाई सौ योजन के मोटे हैं। उनसे आठ-आठ योजन की दूरी पर ज्योतिषी चक्र है। इस प्रकार दो सौ छासठ (२६६) (८+८+२५०-२६६) योजन का जघन्य अन्तर है। उत्कृष्ट अन्तर बारह हजार दो सौ बयालीस (१२२४२) योजन का है वह इस प्रकार है कि मेरु पर्वत दस हजार योजन का चौड़ा है उससे ज्योतिषी चक्र ग्यारह सौ इक्कीस योजन दूर है इस प्रकार १२२४२ (११२१+११२१+१००००=१२२४२) योजन का उत्कृष्ट अन्तर है। निर्व्याघात आसरी जघन्य पांच सौ धनुष और उत्कृष्ट दो गाऊ का अन्तर है। प्रश्न - चन्द्र और सूर्य का ग्रहण कैसे होता है ? और कब होता है? उत्तर - सूर्य के विमान के नीचे राहू ग्रह का विमान है। गति में फर्क आने से जब वह सूर्य के विमान के आडा (सामने) आ जाता है तो सर्य ग्रहण होता है। सर्य ग्रहण जघन्य छह महीनों में और उत्कृष्ट अड़तालीस वर्षों में होता है। राहू का विमान पांचों वर्णों वाले रत्नों का है। चन्द्रमा के विमान के नीचे राहु का विमान है। वह भी पांचों वर्णों वाले रत्नों का है। राहु दो प्रकार का है - १. नित्य राहु और २. पर्व राहु । नित्य राहु कृष्ण पक्ष में प्रतिदिन चन्द्रमा की एक-एक कला को ढकता जाता है। यावत् अमावस्या के दिन सब कलाओं को ढक देता है। शुक्ल पक्ष में प्रतिदिन एक-एक कला को खुली करता जाता है। यावत् पूर्णिमा के दिन सम्पूर्ण चन्द्रमा खुला हो जाता है। जब पर्व राहु चन्द्रमा के आडा (सामने) आ जाता है तब चन्द्र ग्रहण होता है। चन्द्र ग्रहण जघन्य छह महीनों में और उत्कृष्ट बयालीस महीनों में होता है। सूर्य के एक सौ चौरासी मण्डल हैं। उनमें से ११९ (एक सो उगणीस) मण्डल लवण समुद्र में हैं और ६५ (पैसष्ट) मण्डल जम्बूद्वीप में हैं। एक मण्डल से दूसरे मण्डल में दो योजन की दूरी है। चन्द्रमा के पन्द्रह मण्डल हैं उनमें से दस मण्डल लवण समुद्र में हैं और पांच मण्डल जम्बूद्वीप में हैं। एक मण्डल से दूसरे मण्डल की दूरी पैंतीस योजन झाझेरी (अधिक) है। . चन्द्र, सूर्य, ग्रहण, नक्षत्र और तारा विमान इन सब का आकार आधा कविठ के आकार का है। चन्द्र का विमान, योजन लम्बा चौड़ा है। सूर्य का विमान 1, योजन, ग्रह का विमान आधा योजन, Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004093
Book TitlePragnapana Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages414
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size9 MB
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