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दूसरा स्थान पद - ज्योतिषी देवों के स्थान
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वाले, प्रसन्नता उत्पन्न करने वाले दर्शनीय, अभिरूप और प्रतिरूप हैं। यहाँ पर्याप्तक और अपर्याप्तक ज्योतिषिक देवों के स्थान कहे गये हैं।
वे उपपात समुद्घात और स्व स्थान इन तीनों की अपेक्षाओं से लोक के असंख्यातवें भाग में हैं। वहाँ बहुत से ज्योतिषी देव रहते हैं। वे इस प्रकार हैं-बृहस्पति, चन्द्र, सूर्य, शुक्र, शनैश्चर, राहू, धूमकेतु, बुध एवं अंगारक (मंगल) ये तपे हुए तपनीय स्वर्ण जैसे वर्ण वाले हैं। जो ग्रह ज्योतिष चक्र में गति करते हैं। गति में रत, केतु तथा अट्ठाईस प्रकार के नक्षत्र देव गण हैं। वे सब नाना प्रकार की आकृति वाले हैं। तारे पांच वर्ण के हैं और वे सब स्थित लेश्या वाले हैं। जिनका स्वभाव चर है वे विश्राम रहित निरंतर मंडल रूप गति करने वाले हैं। इन सब में प्रत्येक के मुकुट में अपने अपने नाम का चिह्न होता है। महान् ऋद्धि वाले यावत् प्रभासित करते हुए रहते हैं। यहाँ तक का सारा वर्णन पूर्ववत समझना चाहिये।
- वे ज्योतिषी देव अपने अपने लाखों विमानावासों का, अपने अपने हजारों सामानिक देवों का, अपने अपने परिवार सहित अग्रमहिषियों का, अपनी अपनी सेनाओं का, अपने अपने सेनाधिपतियों का, अपने अपने हजारों आत्मरक्षक देवों का तथा अन्य भी बहुत से ज्योतिषी देवों और देवियों का, आधिपत्य अग्रेसरत्व करते हुए यावत् विचरण करते हैं। यहाँ चन्द्र और सूर्य ये दो ज्योतिषी इन्द्र और ज्योतिषी राजा रहते हैं। जो महान् ऋद्धि वाले यावत् प्रभासित करते हुए तक पूर्ववत् समझना चाहिए। वे वहाँ अपने अपने लाखों ज्योतिषी विमानावासों का, चार हजार सामानिक देवों का, सपरिवार चार अग्रमहिषियों का, तीन परिषदाओं का, सात सेनाओं का, सात सेनाधिपतियों का, सोलह हजार आत्मरक्षक देवों का तथा अन्य बहुत से देवों और देवियों का आधिपत्य अग्रेसरत्व करते हुए यावत् विचरण करते हैं।
विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में ज्योतिषी देवों, उनके स्थानों चन्द्र और सूर्य इन दो देवों की ऋद्धि आदि का वर्णन किया गया है।
प्रश्न - ज्योतिषी किसे कहते हैं इस की व्युत्पत्ति क्या है ? उत्तर - द्योतन्ते इति ज्योतींषि विमानानि, तन्निवासिनो ज्योतिष्काः।।
ग्रहनक्षत्राऽऽदिषु ज्योतिष्षु नक्षत्रेषु भवा ज्योतिष्काः, शब्द व्युत्पत्ति एव इयं प्रवत्तिनिमित्ताऽऽश्रयणात त चन्द्राऽऽदयो ज्योतिष्का इति।
. अर्थात् - जिनके विमान चमकते हैं। चमकीले विमान होने से उन्हें ज्योतिषी कहते हैं। उन चमकीले विमानों में रहने वाले देवों को ज्योतिषी देव कहते हैं। यह तो ज्योतिषी शब्द की व्युत्पत्ति मात्र है। प्रवृत्ति से तो चन्द्र, सूर्य आदि को ज्योतिषी देव कहते हैं।
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