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________________ दूसरा स्थान पद - वाणव्यंतर देवों के स्थान उववाएणं लोयस्स असंखिज्जइभागे, समुग्धाएणं लोयस्स असंखिज्जइभागे, सट्ठाणेणं लोयस्स असंखिज्जइभागे । तत्थ णं बहवे अणवण्णिया देवा परिवसंति । महिड्डिया जहा पिसाया जाव विहरति । सण्णिहियसामाणा इत्थ दुवे अणवण्णिंदा traणरायाणो परिवसंति। महिड्डिया, एवं जहा कालमहाकालाणं दोन्हं पि दाहिणिल्लाणं उत्तरिल्लाण य भणिया तहा सण्णिहियसामाणाणं पि भाणियव्वा । संगही गाहा ****************** अणवण्णिय-पणवण्णिय इसिवाइय- भूयवाइया चेव । कंदिय महाकंदिय कोहंड पयंगए चेव ॥ १॥ इमे इंदा - संणिहिया सामाणा धायविधाए इसी य इसिवाले । ईसर महेसरे विय हवइ सुवच्छे विसाले य ॥ २ ॥ हासे हासरई चेव * सेए तहा भवे महासेए । पयए पयगवई विय णेयव्वा आणुपुव्वीए ॥ ३ ॥ ११९॥ भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! अणपत्रिक देवों के पर्याप्तक और अपर्याप्तक स्थान कहाँ कहे गये हैं ? हे भगवन्! अणपन्त्रिक देव कहाँ रहते हैं ? २२१ उत्तर - हे गौतम! इस रत्नप्रभा पृथ्वी के एक हजार योजन मोटे रत्नमय काण्ड के ऊपर एक . सौ योजन और नीचे एक सौ योजन छोड़ कर मध्य में आठ सौ योजन में अणपन्त्रिक देवों के तिरछे असंख्यात लाख नगरावास है, ऐसा कहा गया है। वे नगरावास यावत् प्रतिरूप हैं। वहाँ अणपत्रिक देवों के स्थान हैं। वे उपपात, समुद्घात और स्वस्थान की अपेक्षा लोक के असंख्यातवें भाग में हैं। वहाँ बहुत से अणपत्रिक देव रहते हैं। वे महाऋद्धि वाले इत्यादि वर्णन पिशाच देवों की तरह यावत् विचरण करते हैं तक जानना चाहिए । यहाँ सन्निहित और सामान्य ये दो अणपन्निकों के इन्द्र और अणपत्रिक देवों के राजा रहते हैं। वे महाऋद्धि वाले इस प्रमाण जैसे दक्षिण और उत्तर दिशा के पिशाच इन्द्र काल और महाकाल के संबंध में कहा गया है उसी प्रकार सन्निहित और सामान्य इन्द्र संबंधी भी कहना चाहिये । संग्रहणी गाथाओं का अर्थ वाणव्यंतर देवों के आठ अवान्तरं भेद १. अणपन्निक २. पणपन्निक ३. ऋषिवादित ४. भूतवादित ५. क्रंदित ६. महाक्रंदित ७. कुस्माण्ड और ८. पतंगदेव । * पाठान्तर 'विय' । Jain Education International - For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004093
Book TitlePragnapana Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages414
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size9 MB
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