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________________ २०७ *********** ******** AN.SIL.1भवनवासा व स्था...................२०. *****************************-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-* पण्णत्ता? कहि णं भंते! उत्तरिल्ला णागकुमारा देवा परिवसंति?, गोयमा! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरेणं इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए असीउत्तर जोयण सयसहस्स बाहल्लाए उवरि एगं जोयणसहस्सं ओगाहित्ता हेट्ठा चेगं जोयणसहस्सं वज्जित्ता मज्झे अट्ठहुत्तरे जोयणसयसहस्से, एत्थ णं उत्तरिल्लाणं णागकुमाराणं देवाणं चत्तालीसं भवणावास सयसहस्सा भवंतीति मक्खायं। ते णं भवणा बाहिं वट्टा सेसं जहा दाहिणिल्लाणं जाव विहरंति। भूयाणंदे एत्थ णागकुमारिंदे णागकुमारराया परिवसइ, महिड्डिए जाव पभासेमाणे। से णं तत्थ चत्तालीसाए भवणावास सयसहस्साणं आहेवच्चं जाव विहरइ॥११२॥ भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! पर्याप्तक और अपर्याप्तक उत्तर दिशा के नागकुमार देवों के स्थान कहाँ कहे गये हैं ? हे भगवन्! उत्तर दिशा के नागकुमार देव कहाँ रहते हैं ? । उत्तर - हे गौतम! जंबूद्वीप नामक द्वीप में मेरु पर्वत के उत्तर में एक लाख अस्सी हजार योजन मोटी इस रत्नप्रभा पृथ्वी के ऊपर एक हजार योजन अवगाहन करके तथा नीचे एक हजार योजन छोड कर एक लाख अठहत्तर हजार योजन परिमाण मध्य भाग में उत्तर दिशा के नागकुमार देवों के चालीस लाख भवनावास हैं, ऐसा कहा गया है। वे भवन बाहर से गोल हैं इत्यादि सारा वर्णन दक्षिण दिशा के नागकुमार देवों के वर्णन के अनुसार यावत् विचरण करते हैं तक समझ लेना चाहिये। यहां भूतानंद नाम का नागकुमारेन्द्र नागकुमार देवों का राजा रहता है। वह महाऋद्धि वाला यावत् प्रभासित (सुशोभित) होता हुआ चालीस लाख भवनावासों का यावत् आधिपत्य एवं अग्रेसरत्व करता हुआ विचरण करता है। कहि णं भंते! सुवण्णकुमाराणं देवाणं पजत्तापजत्तगाणं ठाणा पण्णत्ता? कहि णं भंते! सुवण्णकुमारा देवा परिवसंति? - गोयमा! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए जाव एत्थ णं सुवण्णकुमाराणं देवाणं बावत्तरि भवणा-वाससयसहस्सा भवंतीति मक्खायं। ते णं भवणा बाहिं वट्टा जाव पडिरूवा। तत्थ णं सुवण्णकुमाराणं देवाणं पजत्तापजत्तगाणं ठाणा पण्णत्ता। तिसु वि लोयस्स असंखिजइभागे। तत्थ णं बहवे सुवण्णकुमारा देवा परिवसंति महिड्डिया सेसं जहा ओहियाणं जाव विहरंति। वेणुदेवे वेणुदाली य इत्थ दुवे सुवण्णकुमारिंदा सुवण्णकुमार रायाणो परिवसंति, महिड्डिया जाव विहरंति॥११३॥ भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! पर्याप्तक और अपर्याप्तक सुवर्ण (सुपर्ण) कुमार देवों के स्थान कहाँ कहे गये हैं ? हे भगवन् ! सुवर्णकुमार देव कहाँ रहते हैं ? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004093
Book TitlePragnapana Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages414
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size9 MB
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