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उत्तर - दर्शन आर्य दो प्रकार के कहे गये हैं। वे इस प्रकार हैं वीतराग दर्शन आर्य ।
विवेचन प्रश्न दर्शन किसको कहते हैं ?
उत्तर- 'दृश्यन्ते श्रद्धीयन्ते ज्ञायन्ते वा जीवादयः पदार्था अनेन अस्मिन् अस्मात् वा इति
दर्शनम् ।'
अर्थ - जिसके द्वारा जीव अजीव आदि नव तत्त्वों पर श्रद्धा की जाय उसको दर्शन कहते हैं। यही बात वाचक मुख्य आचार्य उमास्वाति ने भी अपने तत्त्वार्थ सूत्र में कही है। - "तत्त्वार्थश्रद्धानं सम्यग्दर्शनम्' अर्थात् नव तत्त्व और उनके अर्थों पर दृढ़ श्रद्धा करना सम्यग् दर्शन है।
इनके भेद प्रभेद और विशेष अर्थ का वर्णन नन्दी सूत्र तथा उत्तराध्ययन सूत्र के २८ वें अध्ययन में है ।
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प्रथम प्रज्ञापना पद - पंचेन्द्रिय जीव प्रज्ञापना
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से किं तं सरागदंसणारिया ? सरागदंसणारिया दसविहा पण्णत्ता । तंजहा - णिसग्गुवएसरुई आणारुई सुत्त बीयरुइमेव । अभिगम वित्थाररुई किरिया संखेव धम्मरुई ॥ १ ॥ भूयत्थेणाहिगया जीवाजीवा य पुण्णपावं च । सहसंमुइयासव संवरो य रोएइ उ णिस्सग्गो ॥ २॥ जो जिणदिट्ठे भावे चउव्विहे सद्दहाइ सयमेव । एमेव णहत्तिय णिसग्गरुड़ त्ति णायव्वो ॥ ३ ॥ प्रश्न - सराग दर्शन आर्य कितने प्रकार के कहे गये हैं ? उत्तर सराग दर्शन आर्य दस प्रकार के २. उपदेश रुचि ३. आज्ञा रुचि ४. सूत्र रुचि ५. ८. क्रिया रुचि ९. संक्षेप रुचि और १०. धर्म रुचि ।
बीज रुचि ६.
जो व्यक्ति स्वमति-जाति स्मरण आदि से जीव, अजीव, पुण्य, पाप, आस्रव और संवर आदि तत्त्वों को भूतार्थ (तथ्य) रूप से जान कर उन पर रुचि - श्रद्धा करता है वह निसर्ग रुचि है। जो तीर्थंकर भगवान् द्वारा उपदिष्ट भावों पर स्वयमेव चार प्रकार (द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव) से श्रद्धान करता है तथा ऐसा विश्वास करता है कि जीवादि तत्त्वों का जैसा स्वरूप तीर्थंकरों ने फरमाया है वह वैसा ही है अन्यथा नहीं उसे निसर्ग रुचि कहते हैं ॥ १, २, ३॥
कहे गये हैं । वे
एए चेव उ भावे उवदिट्ठे जो परेण सद्दहइ ।
छउमत्थेण जिणेण व उवएसरुइ त्ति णायव्वो ॥ ४ ॥
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सराग दर्शन आर्य और
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१. निसर्ग रुचि
इस प्रकार हैं अभिगम रुचि ७. विस्तार रुचि
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